Fighting Malnutrition with help of Kitchen Garden

Bharat Mahan

किचन गार्डेन से कुपोषण के खिलाफ जंग, 100 किशोरियों की पहल
मदईती की परंपरा को जीवित किया,आईएफए कार्यक्रम में जोड़ने की सलाह

पहले तो हमें हंसी आयी थी, लेकिन फिर सोचा तो लगा, रेणु प्रकाश मैडम तो ठीक कह रही हैं। 'जोड़ा केला' लाने से लड़कों को कुछ नहीं होता तो भला हमें क्योें कुछ होने लगा। लोहरदगा जिले के कैरो प्रखंड की गजनी पंचायत के गजनी गांव की ज्ञानी कुमार याद करती है- उस दिन हम किशोरियों को समझ आया कि खान-पान के साथ जो बाते गांव में बतायी जाती है, उसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। ईश्वर ने लड़के-लड़कियों की शारीरिक बनावट में अंतर तो किया है, लेकिन खान-पान, रहन-सहन, भोजन, साफ-सफाई को लेकर जो विभेद या भ्रांति है, उसका कोई आधार नहीं है।

वह बताती है, उस ट्रेनिंग का हम पर गहरा असर पड़ा। 15 साल की उम्र में घोर निराशा, काम-पढ़ाई में मन नहीं लगना, जल्दी थक जाना, बीमारी का जल्दी ठीक नहीं होना, यह अस्वाभाविक नहीं है। एनएफएचएस तीन के आंकड़े बताते हैं कि झारखंड में 15-19 साल की 67.2 फीसदी किशोरियां एनीमिक हैं। एनीमिया यानी रक्त की कमी। रक्त में हिमोग्लोबीन की कमी और इस कमी का सीधा संबंध खान-पान से है। किशोरियों और महिलाओं के सबसे अंत में बचे-खुचे खाने की अघोषित परंपरा के साथ एनीमिया के संबंध की जानकारी ने हमारी आंखें खोल दीं।

ज्ञानी कुमारी आगे जोड़ती हैं- कैरो और कुड़ू की 400 से ज्याद किशोरियों के साथ रेखा तिर्की, रेणु प्रकाश और तबस्सुम के लगातार ट्रेनिंग सत्र ने इन किशोरियों में उत्साह और जोश भर दिया। ट्रेनिंग के बाद किशोरियों ने किशोरी क्लब गठित करने की प्रक्रिया शुरू की और देखते ही देखते दो महीने में किशोरी ग्रुप ख़ड़ा हो गया। किशोरी क्लब से जुड़ी किशोरियां अब अपने स्वास्थ्य, रहन-सहन, खान-पान को लेकर व्याप्त भ्रांतियों को समझने और खंडित करने की मुहिम में जुड़ गयीं।

कैरो प्रखंड के उलटी गांव की सरना किशोरी क्लब की अध्यक्ष जीतमनी कुमारी कहती हैं- दो-तीन साप्ताहिक बैठकों के बाद हमें अहसास हुए कि किशोरियों को रचनात्मक कार्यों से जोड़ना है तो एनीमिया से मुक्त करना होगा। किशोरी क्लब की 90 फीसदी किशोरियां देखने से ही कुपोषित नजर आती थीं। एनीमिया का संबंध खान-पान से है और यही किशोरियों को कुपोषित करता है।
बेला किशोरी क्लब की रतनी कुमारी याद करती हैं- सरकार की ओर से हर सप्ताह आईएफए (आयरन फोलिक एसिड) की गोली दी जाती है। कक्षा 6 से 12 तक की छात्राओं के साथ-साथ स्कूल नहीं जाने वाली किशोरियों को भी आईएफए की गोली दी जाती है, लेकिन सिर्फ आईएफए गोली के भरोसे कितने दिनों तक अपने को बचाया जा सकता है। यही चिंता हम सब किशोरियों की रही।
गुलाब किशोरी क्लब की अलका लकड़ा कहती हैं कि ट्रेनिगं में मिली जानकारी से हम अपने स्वास्थ्य को लेकर डरे भी और इससे बाहर आने की छटपटाहट भी बढ़ी। सभी किशोरी क्लब में बातचीत का मुद्दा ही खान-पान और उससे भ्रांतियों से मुक्ति रहने लगा।
एनसीएसटीसी भारत सरकार के चल रहे महिला स्वास्थ्य कार्यक्रम से जुड़ी रेखा तिर्की ने परंपरागत खेती और किचन गार्डेन के बारे में किशोरी समूह को जानकारी दी तो किशोरियों के उत्साह का ठिकाना नहीं रहा। तय हुआ कि हर कोई अपने घर के आंगन में, घर के सामने या पीछे कम-से-कम चार-पांच डिसमिल जमीन पर किचन गार्डेन या बाड़ी लगायेगा।

ज्यादातर किशोरियों का अनुभव रहा है कि पहले उनके घरों में बाड़ी होती थी और बाड़ी में साग-सब्जी उपजाये जाते थे, मुर्गी-बत्तख पालने का रिवाज था। रेखा तिर्की ने किशोरियों को इसी बाड़ी या किचन गार्डेन तैयार करने में सहयोग देने का वादा किया। किशोरियों की बैठक के बाद जब घर के लोगों को जानकारी दी तो ज्यादातर घरों में इस विचार को सराहा गया। 100 घरों की किशोरियों ने किचन गार्डेन की तैयारी शुरू कर दी। बैठक में तय हुआ, हर समूह की सदस्य एक-दूसरे घरों में 'मदईती' करेंगी। मदईती यानी एक-दूसरे के घर में बिना मजदूरी के जोत-कोड़ करना, बीजरोपण करना, क्यारी बनाना, पानी पटाना आदि-आदि।

अब किशोरी समूह में मंथन का विषय था- हमें संतुलित और पौष्टिक खान-पान में क्या चाहिए? और इसे किन पौधों से प्राप्त करें। एनसीएसटीसी प्रोजेक्ट से जुड़ी रेणु प्रकाश, ने किशोरियों के शारीरिक और मानसिक विकास से जुड़े आहारों की पूरी श्रृंखला की जानकारी किशोरी समूह को दी।किशोरियों के लिये यह जानकारी काफी लाभप्रद साबित हुई।

एनसीएसटीसी प्रोजेक्ट की ओर से किचन गार्डेन में मौसम के अनुकूल लगने वाली साग-सब्जियों के बीज और पौधे किशोरियों को उपलब्ध कराये गये। अभी 100 किशोरियों के घरों पालक, मूली, गाजर, टमाटर, मकई, पपीता, कद्दू, करैला, भिंडी, मिर्ची आदि की खेती हो रही है।

एक परिवार के लिये पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध साग-सब्जियों का पूरा उपयोग अब किशोरियों के खाने में हो रहा है। चूंकि किशोरियों की मेहनत का परिणाम है किचन गार्डन इसलिये परिवार वाले भी किशोरियों को खाने में प्रथम प्राथमिकता दे रहे हैं।

इस किचन गार्डेन की खासियत है कि इसमें किसी भी प्रकार की रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं किया जाता है। सड़े-गले पत्ते और गोबर की खाद उर्वरक के तौर पर इस्तेमाल मेंं लायी जा रही है।

चाल्हो गांव के अमित लकड़ा कहते हैं- बच्ची लोग मिलकर किचन गार्डेन खड़ा की है तो हमलोग भी इसमें पानी देते रहते हैं। बच्ची अब स्कूल के बाद किचन गार्डेन की देखरेख में समय बिताती है। किचन गार्डेन के लिये पानी की व्यवस्था आसान काम नहीं है। तबस्सुम बताती हैं कि नदी-तालाब सूख गये हैं। पीने के लिये चापाकल का पानी लाते हैं। चापाकल से लाये पानी से किचन गार्डेन में भी पटवन होता है।

एनसीएसटीसी प्रोजेक्ट से जुड़ी रेणु प्रकाश कहती है- किशोरियों में जबरदस्त उत्साह है। आसपास की बाकी किशोरियां भी क्लब गठित कर किचन गार्डेन की पहल करना चाह रही हैं। वह बताती है कि किचन गार्डेन की उपज के नियमित सेवन से हमें उम्मीद है कि उनके स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ेगा।

रेणु प्रकाश कहती हैं - राज्य सरकार की ओर से 51 लाख किशोरियों को हर सप्ताह आईएफए की गोली दी जाती। ये गोलियां 40 हजार स्कूलों तथा लगभग 30 हजार आंगनबाड़ी केन्द्रों की ओर से किशोरियों को दिये जाते हैं। वह कहती हैं- काश! आईएफए गोली के साथ-साथ किचन गार्डेन को प्रोत्साहित किया जाता तो भविष्य की 'सशक्त महिलाएं हमारे सामने होतीं।'

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