अक्सर प्रश्न उठता है कि शिक्षा का उद्देश्य क्या है? क्या शिक्षा का उद्देश्य केवल लिखना, पढ़ना सीखना है, या फिर नौकरी/ व्यवसाय करने के योग्य बनना है, या फिर धन अर्जित करना है? सच्ची और वास्तविक शिक्षा आ उद्देशय इन सभी ध्येयों से कहीं बढ़कर और ऊपर है. शिक्षा हमें अर्जित किए गए ज्ञान का सदुपयोग करना
Jharkhand
हमारे देश के सरकारी विद्यालयों में कक्षा अनुपस्थिति हमेशा से एक चुनौती रही है. विद्यालय में नामांकित होने के बावजूद कई छात्र विभिन्न कारणों से कक्षा में उपस्थित नही होते. यह बच्चे पाठ्यक्रम के विषय तो दूर, मूलभूत सिद्धांत भी ठीक से समझ नही पाते. इसका असर न सिर्फ उनके व्यक्तिगत बल्कि विद्यालय के
विद्यालय समाज और शिक्षा के बीच महत्वपूर्ण कड़ी है. जब ज्ञान, मूल्यों और सिद्धांतो का प्रकाश विद्यालय की चार दीवारी से बाहर समुदाय तक पहुंचता है, तब समाज शिक्षा के वास्तविक महत्व - प्रगति और खुशहाली - को समझने एवं स्वीकार करने में सक्षम बनता है. जागरूक समुदाय दायित्व पूरा करता है कि उसके बच्चे पढ़े -
छात्र केंद्रित शिक्षण प्रणाली को सफल बनाने के लिए शैक्षिक गतिविधियों में छात्रों की सहभागिता आवश्यक है. इसलिए अब पुस्तक बद्ध पढ़ाई से आगे बढ़कर विद्यालयों में आनुभविक शिक्षण प्रणाली पर जोर दिया जाने लगा है. समय और परिस्थितियों के अनुरूप शिक्षक अब नई-नई शिक्षण विधियों का समावेश छात्रों के दैनिक जीवन
बच्चे जीवन की कई महत्वपूर्ण क्रियाएं जैसे कि भोजन करना, चलना और बोलना खेल-खेल में स्वतः ही सीख जाते हैं. खेल-खेल में सीखना और समझना बच्चों के लिए स्वाभाविक प्रक्रिया है. ऐसा करने से उन्हें पढ़ाई आनन्दमयी लगने लगती है, और वह सहयोग, समन्वय, मित्रता, दया, करूणा, अनुशासन, प्रेम, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के
हमारे देश में एक प्रसिद्ध कहावत है `एक कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी`। अनेक भाषाओं, बोलियों और शैलियों के कारण ग्रामीण भारत के विद्यालयों में शिक्षकों को एक विशेष समस्या का सामना करना पड़ता है. अक्सर देखा गया है कि छात्रों की स्थानीय बोली शिक्षक समझ नही पाते. छात्र भी भाषा बोध में कमी के कारण