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आमतौर पर 6 से 14 सवाल के बच्चों को एकल विद्यालय में पढ़ाया जाता है। खेल-खेल में गीत, कहानी आदि के माध्यम से पढ़ाई की जाती है। सुदूर ग्रामीण वनवासी उपेक्षित बच्चे एकल विद्यालय में आकर शिक्षित और संस्कारिक हो रहे हैं। लेकिन चैंकने वाली एवं दिलचस्प बात यह है कि मूक बधिर बच्ची भी एकल विद्यालय से शिक्षित हो पाने में सार्थक सिद्ध हुई है। एकल विद्यालय के आचार्य धनराज कुमार मण्डावी ने एकल के अपने अभिनय व इशारों की कुशलता से ऐसी दिव्यांग बच्ची में एकल की शिक्षा व संस्कार भरने में कामयाबी हासिल की है।
मूक बधिर बच्ची का नाम है कुमारी अमृत पुराने। जमकशा गाँव की रहने वाली है। यह गाँव छत्तीसगढ़ प्रांत के धमतरी भाग के राजनंद अंचल के मानपुर संच में पड़ता है। कुमारी अमृता नौ वर्ष की थी तब वह एकल विद्यालय जबकशा गाँव में नामांकन कराई। दो वर्ष बाद यानि वर्ष 2011 से 2013 तक इसी एकल विद्यालय में पढ़ाई की। एकल विद्यालय जबकशा गाँव के तत्कालीन आचार्य धनराज कुमार मण्डावी ;संप्रति राजनंद गाँव अंचल प्राथमिक शिक्षा प्रशिक्षकद्ध थे। एकल विद्यालय में पढ़ने आती थी।
तत्कालीन एकल आचार्य धनराज जी बताते हैं कि बचपन में ही अमृता इशारों में ही पढ़ाई करती थी। अभिनय एवं इशारों को वह समझ लेती थी। गीत, खेल व गाती बोलती तो नहीं थी, बल्कि स्वयं अभिनय जरूर करती थी। जैसे-अभिनय युक्त गतिविधि के साथ-
एक - एक - एक --- नाक हमारी एक।
दो - दो - दो --- कान हमारी दो।
तीन -तीन - तीन --- डाल के पत्ते तीन।
आदि को इशारों से अभिनय करके उसे शिक्षित किया जाता था। एकल विद्यालय के आचार्य जी जैसे-जैसे अभिनय करते। वैसे-वैसे कुमारी अमृता भी अभिनय करती। आचार्य महोदय कुमारी अमृता को अभिनय युक्त शिक्षा अन्य बच्चों से अलग हट कर देते थे। समूह के बच्चों के साथ नहीं। कुमारी अमृता के माँ-पिताजी किसान हैं। खेती-बारी करते हैं। मूक बधिर बच्ची को एकल विद्यालय में आने का बड़ा शौक रहता था। जिसे जानकर इन्होंने एकल विद्यालय में नामांकन करा दिया। एकल विद्यालय में आने से अमृता को काफी मन लग गया। हालांकि दिन के 10 बजे से 4 बजे तक वह गाँव के राजकीय प्राथमिक विद्यालय जबकशा में पढ़ने जाया करती थी, किन्तु उसे वहाँ अकेलापन महसूस होता था। अकेले यूं ही किसी कोने में दुबकी रहती थी। मूक-बधिर होने के कारण स्वाभाविक तौर पर इसके साथ अन्य बच्चों का ताल-मेल बनता ही नहीं था। लेकिन शाम को 5 बजे से 8 बजे तक चलने वाले एकल विद्यालय में अमृता की वैसी स्थिति नहीं रहती थी। आचार्य के साथ अभिनय के अलावे कुछ न कुछ करती ही रहती थी। जिससे उसे एकल में मन लगा रहता था। यदि किसी कारणवश एकल विद्यालय कभी बंद रहा तो अमृता एकल विद्यालय के आचार्य के घर पहुँच जाती थी। अभी वह 15-16 वर्ष की है। राजकीय विद्यालय से आठवीं तक पढ़ाई कर वह वर्ष 2018 में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा संचालित ‘‘आस्था’’ नामक मूक-बधिर विद्यालय में नवमी कक्षा की पढ़ाई कर रही है।
धनराज जी बताते हैं कि जब भी मिलती है, उसमें एकल विद्यालय के संस्कार दिखाई पड़ते हैं। मिलने पर वह इशारों से ही अभिनय के साथ बात करती है। इशारों मे ‘‘जय श्री राम’’ का अभिवादन भी करती है। जय श्री राम का अभिवादन दोनों हाथ जोड़कर तथा सिर झुकाकर करती है। मिलने पर जहाँ एकल की पूर्व छात्रा कुमारी अमृता भी प्रफुलित होती है, तो वही एकल के पूर्व आचार्य धनराज मण्डावी भी आनंदित होते हैं। यह है मूक बधिर बच्ची का एकल विद्यालय से साक्षर होने का अपना सा एहसास।
Deaf And Dumb Amrita Gets Her Initial Education In Ekal
This is the story of Amrita Purane from a remote village, Jamkasha, in the state of Chhattisgarh. This village girl, though being deaf and dumb, showed interest in joining the Ekal Vidyalaya along with the other village children. The teacher, Dhanraj Kumar Mandavi, took great pains, but as a mission achieved success in educating Amrita. She later joined the government run high school in the village. Read the detailed story above in Hindi.