5.5 लाख से ज्यादा गांव खुले में शौच से मुक्त घोषित
एसबीएम की बदौलत 93.1 प्रतिशत परिवारों की शौचालयों तक पहुंच
30 राज्य/केन्द्र शासित प्रदेशों में 100 प्रतिशत आईएचएचएल कवरेज
ओडीएफ के परिणामस्वरूप अतिसार और मलेरिया के कारण होने वाली मौतों में कमी आई
केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2018-19 पेश की। इसमें कहा गया है कि 02 अक्टूबर,2019 तक सम्पूर्ण स्वच्छता कवरेज के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 2014 में शुरू किये गये स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) के अंतर्गत हुई प्रगति को इस समीक्षा में रेखांकित किया गया है। यह प्रमुख कार्यक्रम विशालतम स्वच्छता अभियान होने के साथ-साथ विश्व में व्यवहारिक परिवर्तन को प्रभावित करने का एक प्रयास भी है। पिछले चार वर्षों में 99.2 प्रतिशत ग्रामीण भारत एसबीएम के माध्यम से कवर किया गया है। अक्टूबर, 2014 से देशभर में 9.5 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण किया गया है और 5,64,658 गांवों को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया गया है। 14 जून, 2019 तक 30 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में 100 प्रतिशत व्यक्तिगत घरेलू शौचालय (आईएचएचएल) कवरेज उपलब्ध कराई जा चुकी है। एसबीएम ने स्वास्थ्य निष्कर्षों में महत्वपूर्ण सुधार किया है।
एसबीएम ने पांच साल से छोटे बच्चों में अतिसार और मलेरिया जैसे रोगों, मृत जन्म लेने वाले शिशुओं और कम वजन वाले शिशु का जन्म (2.5 किलोग्राम से कम वजन वाला नवजात शिशु) जैसे मामलों में कमी लाने में मदद की है। ये प्रभाव खासतौर पर उन जिलों में देखा गया, जहां 2015 में आईएचएचएल कवरेज कम थी। एसबीएम दुनिया के विशालतम स्वच्छता अभियानों में से एक है और इसकी बदौलत जबरदस्त बदलाव और उल्लेखनीय स्वास्थ्य लाभ प्राप्त हुए है। इस मिशन के अंतर्गत केवल शौचालयों के निर्माण पर ही नहीं, बल्कि समुदायों में व्यवहारिक बदलाव को प्रभावित करने पर भी ध्यान केन्द्रित किया गया। इसकी परिणति स्वास्थ्य संबंधी मानकों में महत्वपूर्ण लाभ में हुई है, जैसा कि विभिन्न अध्ययनों में दर्शाया गया है। स्वच्छ भारत से प्राप्त होने वाले लाभ व्यापक आर्थिक विकास के उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों रूप से महत्वपूर्ण है।
ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन (एसएलडब्ल्यूएम)
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है, ‘ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन (एसएलडब्ल्यूएम) एसबीएम मिशन का एक अन्य प्रमुख संघटक है। बहुत से राज्यों ने अपशिष्ट संग्रह केन्द्रों, मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता के प्रबंधन की गतिविधियां, बायो-गैस संयंत्रों की स्थापना, कम्पोस्ट पिट्स का निर्माण, कूड़ेदान की व्यवस्था, कचरे के संग्रह, पृथककरण और निपटान की प्रणाली, जल निकासी की सुविधा का निर्माण और लीच पिट्स और सोक पिट्स का निर्माण तथा स्थिरीकरण तालाब (स्टेबलाइजेशन पान्ड्स) जैसी गतिविधियों का संचालन किया है।’
भौतिक वातावरण पर एसबीएम के प्रभाव के संदर्भ में यूनिसेफ द्वारा पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के सहयोग से हाल ही में कराये गये एक अध्ययन से संकेत मिलता है कि जल, मिट्टी और भोजन के दूषण से निपटने पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष इस ओर इशारा करते है कि इस दूषण में कमी आने का श्रेय काफी हद तक स्वच्छता और साफ-सफाई के तरीकों में हुए सुधार, साथ ही साथ नियमित निगरानी जैसी सहायक प्रणालियों को दिया जा सकता है।
भविष्य की राह
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है, ‘एसबीएम जबरदस्त बदलाव लाने और कुल मिलाकर समाज को उल्लेखनीय लाभ प्रदान करने में समर्थ रहा है। दुनिया में चलाये गये विशालतम स्वच्छता अभियानों में से एक है। अनेक राज्य 100 प्रतिशत ओडीएफ और आईएचएचएल कवरेज का दर्जा प्राप्त कर चुके है और इस प्रकार लोगों विशेषकर महिलाओं की गरिमा में व्यापक बदलाव आया है। इस मिशन ने स्कूलों, सड़कों और पार्कों जैसे सार्वजनिक स्थानों में महिलाओं के लिए अलग से शौचालय बनवाने के जरिये महिला-पुरूष में भेदभाव को दूर करने के वाहक का कार्य किया है। स्कूलों में दाखिला लेने वाली लड़कियों की संख्या में वृद्धि और स्वास्थ्य संबंधी मानकों में सुधार लाने के जरिये इस जनांदोलन का समाज पर परोक्ष रूप से सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।’
सबके लिए स्वच्छता के प्रति भारत की शानदार यात्रा ने व्यवहार संबंधी परिवर्तन की जड़े लोगों की चेतना में गहराई से जमाते हुए सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ सुनिश्चित किये है। यह मिशन नागरिकों के व्यवहार में बड़ा बदलाव लाया है। यह मिशन महिला-पुरूष समानता और महिला सशक्तिकरण पर ध्यान केन्द्रित करते हुए राष्ट्रीय विकास प्राथमिकताओं को प्रतिबिम्बित करता है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि यह मिशन 2030 वैश्विक सतत विकास एजेंडा और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) विशेषकर एसडीजी 6.2 के साथ संरेखित है। ‘2030 तक सबके लिए उपयुक्त और समान साफ-सफाई एवं स्वच्छता तक पहुंच प्राप्त करना और खुले में शौच समाप्त करना, महिलाओं और लड़कियों तथा असुरक्षित स्थितियों में रहने वाली महिलाओं की जरूरतों पर विशेष ध्यान देना।’