कोविड-19 वैश्विक महामारी के कारण एक राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन है, जिससे बड़ी संख्या में लोग भूख की चपेट में आ गए हैं। इस अभूतपूर्व महामारी और लॉकडाउन के कारण दिहाड़ी मजदूर, प्रवासी श्रमिक, बेघर, गरीब और बहुत से ऐसे लोग प्रभावित हुए हैं जो अक्सर एक जगह से दूसरी जगह आते जाते रहते हैं। ऐसे जरूरतमंद लोगों का पेट भरने के लिए सामुदायिक रसोई एक महत्वपूर्ण समाधान के रूप में उभरी है।इसका मुख्य उद्देश्य ऐसेजरूरतमंद लोगों को सस्ता और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना है।
प्रत्येक ग्राम पंचायत में स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) नेटवर्क की मौजूदगी और स्थानीय स्वायत्त शासन के साथ उनके जुड़ाव ने उन्हें सामुदायिक रसोई/दीदी की रसोई संचालित करने का काम दिलाने में मदद की।प्रत्येक ग्राम पंचायत में स्वयं सहायता समूह नेटवर्क की मौजूदगी और स्थानीय स्वायत्त शासन के साथ उनके जुड़ाव ने उन्हें सामुदायिक रसोई संचालित करने का काम दिलाने में मदद की। बिहार, झारखंड, केरल, मध्य प्रदेश और ओडिशा के पांच राज्यों में चलाई जा रही 10,000 सामुदायिक रसोइयां इनमें से कुछ हैं। इन राज्यों के 75 अलग-अलग जिलों में फैली ये रसोइयां लगभग 70,000 जरूरतमंद व्यक्तियों को दिन में दो बार भोजन उपलब्ध करा रही हैं।अन्य राज्य भी इस तरह की पहल कर रहे हैं।
केरल एक ऐसा राज्य है जहां कोरोना वायरस से संक्रमिल मामले सबसे ज्यादा हैं। यहां पर स्थानीय निकायों के साथ मिलकर कुदुम्बश्री स्वसहायता समूह की महिलाएं ऐसी जगहों पर सामुदायिक रसोई चला रही हैं जहाँ प्रवासी श्रमिक और गरीबी से त्रस्त परिवार हैं। भोजन में मुख्य रूप से घी चावल और चिकन करी दी जाती है। रसोई में तैयार खाने को स्वसहायता समूह, छोटे पैकेटों में बंद कर ग्रामीण समुदायों तक पहुंचाते हैं। ये खाना उनलोगों के लिए भी बहुत उपयोगी साबित होता रहा है जो अपने घरों में क्वारंटीन में हैं और जिसकी वजह से उन्हें पौष्टिक भोजन उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।
त्रिपुरा में सामुदायिक रसोई के ठेके राज्य सरकार की ओर से ऐसेस्वसहायता समूहों को दिए गए हैं जिनके पास खानपान व्यवसाय है या बड़ी मात्रा में खाना पकाने का पहले से कोई अनुभव है।
अरुणाचल प्रेदश में महिला स्वसहायता समूहों ने प्रशासन को नकद राशि का योगदान किया है और साथ ही कोविड की ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों को नाश्ता,खाना ,चाय और स्नैक्स उपलब्ध करा रहे हैं। इसके अलावा पुलिसकर्मियों को मुफ्त सिले मास्क, चावल और सब्जियाँ आदि भी दे रहे हैं।
ओडिशा में,6 लाख मिशन शक्ति स्वसहायता समूह की लगभग 70 लाख महिला सदस्य सामुदायिक रसोई द्वारा अनाज, किराने का सामान और पका हुआ भोजन जैसी बुनियादी चीजें मुहैया करा रही हैं। मिशन शक्ति के तहत लगभग 45,000 लोगों केा भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है।
झारखंड सरकार ने मुख्य मंत्री दीदी रसोई के नाम से सामुदायिक रसोई शुरु की है। इसके जरिए गांवों में बेहद निर्धन परिवारों, दिव्यांगजनों और बच्चों तथा बेहद जरुरमंदों को खाना दिया जाता है। राज्य के 4185 ग्राम पंचायतों में ऐसी सामुदायिक रसोइयां चलाई जा रही हैं।
जम्मू कश्मीर में स्वसहायता समूह फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों की जरुरतों को पूरा करने के लिए लगातार उनके संपर्क में हैं।
लॉकडाउन के दौरान जरुरी पोषक आहार और सेवाएं सुनिश्चित करती महिला स्वसहायता समूह की कार्यकर्ताएं
कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान घर में रहें सुरक्षित रहें के पालन के लिए यह भी आवश्यक है कि हर परिवार को उसके घर के दरवाजे पर या पास में सभी आवश्यक सामान और सेवाएं मिलती रहें। इसे ध्यान में रखते हुए ही देशभर में स्वसहायता समूहों ने विभिन्न तरह की पहल शुरु की है। उनकी ओर से यह काम आवश्यक सामाजिक दूरी बनाए रखने के नियमों का पालन करते हुए किया जा रहा है। ये स्वसहायता समूह अनाज ,पका खाना, ताजी सब्जियां और महिलाओं के लिए मासिक धर्म के दौरान साफ सफाई के लिए आवश्यक वस्तुएं सीधे घरों तक पहुंचा रहे हैं। राष्ट्रीय आजीविका ग्रामीण मिशन -एनआरएलएम आजीविका ग्रामीण एक्सप्रेस योजना के तहत समर्थित इलेक्ट्रिक वाहन और अन्य प्रकार के वाहनों का उपयोग विभिन्न राज्यों में इस कार्य के लिए किया जा रहा है।
मौजूदा चुनौतीपूर्ण हालात में "वेजीटेबल्स ऑन व्हील्स" और "फ्लोटिंग सुपरमार्केट" जैस प्रयोग दीदी स्वसहायता समूहों की ओर से एक बड़े समाधान के रूप में सामने आए हैं। ओडिशा और छत्तीसगढ़ में, महिलाएं टेक होम राशन के साथ-साथ अंडे भी वितरित कर रही हैं। इसके माध्यम से वे ऐसे निर्धन लक्षित समूहों तक पहुंच बना रहे हैं जिनमें पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे, गर्भवती महिलाएं और स्तनपान कराने वाली माताएं शामिल हैं।
स्वसहायता समूह के सदस्य पीडीएस की दुकानों पर भीड़ रोकने के लिए कार्ड के जरिए दूसरों के लिए राशन लेने और उनके घरों तक पहुंचाने का काम भी कर रहे हैंफ। राष्ट्रीय आजीविका ग्रामीण मिशन (एनआरएलएम) के वीआरएफ कोष से निर्धन परिवारों को आर्थिक मदद दे रहा है। देश के अधिकांश राज्यों जैसे असम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, लय मेघालय, नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा और सिक्किम सहित विभिन्न राज्यों में सामुदायिक संस्थानों द्वारा वीआरएफ का इस्तेमाल निर्धन परिवारों की मदद के लिए किया गया है। ओडिशा और छत्तीसगढ़ में, स्वसहायता समूहों ने भी इस कोष का उपयोग किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किशोरियों को स्वच्छ सेनेटेरी पैड उपलब्ध हो सकें।
बिहार, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के एनआरएलएम से जुड़े महिला समूह, बालकों, मातृ एवं किशोर स्वास्थ्य तथा उनकी पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अग्रिम पंक्ति में तैनात स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की मदद कर रहे है। इस तरह की मदद में प्रसव पूर्व और प्रसव बाद की स्वास्थ्य देख रेख और आईएफए टैबलेटों के माध्यम से पोषक तत्वों की पूर्ति भी शामिल हैं।
इन राज्यों में स्वसहायता समूहों की 2118 महिलाएँ 4310 ऐसी गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं तक अपनी सेवा दे चुकी हैं जो कुपोषित हैं।
सामाजिक उत्तरदायित्व निर्वहनके माध्यम से अपनी आजीविका चलाते हुए ये महिलाएं कोविड -19 के प्रकोप के खिलाफ पूरे समर्पण भाव के साथ लड़ रही हैं।