इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने कोविड -19 का पता लगाने में ‘कोविराप’ नाम की नैदानिक मशीन की क्षमता का सफलतापूर्वक सत्यापन किया है। यह मशीन आईआईटी -खड़गपुर के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित की गई है। विभिन्न व्यावसायिक इकाइयों ने पहले ही प्रौद्योगिकी लाइसेंसिंग के लिए इस संस्थान से संपर्क किया है ताकि राज्य भर के आम लोगों तक इस नवाचार की तेजी से पहुंच हो सके। अपने सख्त दिशानिर्देशों का पालन करते हुए आईसीएमआर की एक अधिकृत प्रयोगशाला द्वारा रोगी के नमूनों का कठोर परीक्षण किये जाने के बाद, आईसीएमआर ने अब इस कोविड -19 नैदानिक जांच के प्रमाणन को हरी झंडी दे दी है। इस जांच को संचालन के लिहाज से काफी आसान बनाया गया है और काफी सस्ती होने के साथ-साथ इसके नतीजे की जानकारी एक घंटे के भीतर कस्टम-विकसित मोबाइल फोन एप्लिकेशन में उपलब्ध करायी सकती है।
कोविड -19 के खिलाफ देश की लड़ाई में इस महत्वपूर्ण उपलब्धि की घोषणा करने के लिए बुधवार को एक आभासी प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए, केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा, "मुझे खुशी है कि इस चिकित्सा प्रौद्योगिकी नवाचार के माध्यम से आईआईटी खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य हासिल किया है। इस उपकरण के पोर्टेबल होने और इसे बहुत कम ऊर्जा आपूर्ति पर संचालित किये जा सकने की वजह से यह ग्रामीण भारत में कई लोगों के जीवन को प्रभावित करेगा। न्यूनतम प्रशिक्षित ग्रामीण युवा इस उपकरण को संचालित कर सकते हैं।”
केन्द्रीय मंत्री ने आगे कहा कि इस नवाचार ने “उच्च गुणवत्ता वाली और सटीक कोविड जांच को लगभग 500 रूपए की खर्च के साथ आम लोगों के लिए बेहद सस्ता बना दिया है, जिसे सरकारी हस्तक्षेप के माध्यम से और अधिक सस्ता किया जा सकता है।” उन्होंने कहा, “जैसा कि आईआईटी खड़गपुर द्वारा सूचित किया गया है, इस मशीन को न्यूनतम ढांचागत जरूरतों के साथ 10,000 रुपये से भी कम की लागत में विकसित कर इस प्रौद्योगिकी को आम लोगों के लिए सस्ता बनाया जा सकता। इस नई मशीन में जांच की प्रक्रिया एक घंटे के भीतर पूरी हो जाती है।”
डॉ. पोखरियाल ने आईआईटी खड़गपुर के निदेशक प्रोफेसर वी.के. तिवारी और प्रोफेसर सुमन चक्रवर्ती एवं डॉ. अरिंदम मोंडल के नेतृत्व वाले अनुसंधान दल को इस पथ– प्रवर्तक खोज और आण्विक निदान को ऊंची प्रयोगशालाओं से निकाल कर लोगों तक ले जाने के लिए बधाई दी।
इस परियोजना को अप्रैल 2020 के अंत में संस्थान से वित्तीय सहायता मिली क्योंकि प्रोफेसर तिवारी ने शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक के दृष्टिकोण का अनुपालन करते हुए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की एक पहल के अनुसार कोविड -19 से संबंधित अनुसंधान एवं उत्पाद विकास का समर्थन करने के लिए एक समर्पित कोष स्थापित करने का निर्णय लिया।
इस जांच के बारे में बोलते हुए, आईआईटी खड़गपुर के निदेशक प्रोफेसर वी.के. तिवारी ने कहा, "यह वास्तव में चिकित्सा विज्ञान, विशेष रूप से वायरोलॉजी के क्षेत्र, के इतिहास में सबसे बड़ा योगदान है और काफी हद तक पीसीआर-आधारित जांचकी जगह लेने के लिए पूरी तरह से तैयार है।"
यहां इस बात का उल्लेख किया जाना जरुरी है कि इस परियोजना के नैदानिक परीक्षण चरण के विभिन्न खर्चों को पूरा करने के लिए आईआईटी फाउंडेशन, यूएसए द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की गई थी। आंशिक वित्तीय सहायता आईआईटी खड़गपुर में भारत सरकार के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) द्वारा स्थापित कॉमन रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट हब ऑनअफोर्डेबल हेल्थकेयर की ओर से भी प्रदान की गई।
डॉ. शांता दत्ता, निदेशक, आईसीएमआर-एनआईसीईडी ने साथी शोधकर्ताओं के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा, “परीक्षण और सत्यापन प्रक्रिया की देखरेख के दौरान मैं इस पोर्टेबल और कम लागत वाली मशीन इकाई से बहुत प्रभावित थी, जो वास्तव में परिचालकों के रूप में अकुशल मानव संसाधनों के समर्थन के साथ परिधीय प्रयोगशालाओं में कोविड-19 से संबंधित निदान के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है। इसे अब आम लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए तेजी से व्यावसायिक पैमाने पर पहुंचाने की आवश्यकता है। यहां तक कि बेहतर प्रदर्शन के लिए इस प्रणाली में और आगे सुधार के प्रयासों में सहयोग देने में आईसीएमआर-एनआईसीईडी को बेहद ख़ुशी होगी।”
'कोविराप' नैदानिक जांच की सत्यापन प्रक्रिया पर विस्तार से प्रकाश डालते करते हुए, आईसीएमआर – नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ़ कॉलरा एंड एंटरीक डिजीजेज (एनआईसीईडी) की ओर से रोगी के जांच की देखरेख करने वाली अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध वायरोलॉजिस्ट डॉ. ममता चावला सरकार ने कहा, '' विस्तृत जांच परीक्षण के परिणामों ने स्पष्ट रूप से यह दिखाया है कि यह परख वायरल लोड के अत्यंत निम्न स्तर का पता लगाने की क्षमता रखती है जोकि परीक्षण के समान सिद्धांतों पर आधारित कोई अन्य विधि, यहां तक कि दुनिया भर में सबसे प्रसिद्ध शोध समूहों में से कोई भी, अब तक इस स्तर तक नहीं पहुंच सकी है। व्यवहार में, इसका मतलब यह है कि संक्रमण के बहुत शुरुआती चरणों का पता लगाया जा सकता है, जिससे रोगी को अलग किया जा सकता है और समुदाय में बिना लक्षण वाले रोगियों के माध्यम से संक्रमण के अनियंत्रित प्रसार को रोका जा सकता है।"
यह नई जांच विधि एक अत्यधिक विश्वसनीय और सटीक आण्विक नैदानिक प्रक्रिया को अपनाती है, जिसे आईआईटी खड़गपुर के अनुसंधान दल द्वारा विकसित अल्ट्रा-लो-कॉस्ट पोर्टेबल डिवाइस यूनिट में संचालित किया जा सकता है। जांच के नतीजों को मैन्युअल व्याख्या की जरुरत के बिना एक कस्टम-निर्मित मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से प्रदान किए जाते हैं।
इस नवीन नैदानिक मंच को प्रोफेसर सुमन चक्रवर्ती, प्रोफेसर, मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी खड़गपुर और डॉ. अरिंदम मोंडल, सहायक प्रोफेसर, स्कूल ऑफ बायो-साइंस, आईआईटी खड़गपुर के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा विकसित किया गया है। इस नैदानिक उपकरण को आईसीएमआर के दिशानिर्देशों के अनुसार आईसीएमआर – एनआईसीईडी, जोकि आईसीएमआर द्वारा अधिकृत एक संस्थान है, में कठोर परीक्षण प्रोटोकॉल से गुजारा गया है। वहां किए गए परीक्षणों से पता चला है कि इस नए परख के नतीजे उल्लेखनीय रूप से उच्च स्तर की विशिष्टता और संवेदनशीलता, जोकि किसी भी नैदानिक परीक्षण की क्षमता के संकेतक के रूप में उपयोग किये जाने वाले दो आम मापदंड हैं, के साथ प्रतिष्ठित आरटी-पीसीआर जांच की तुलना में मानक स्तर के हैं।
आईसीएमआर – एनआईसीईडी ने प्रमाणित किया है कि यह जांच उपयोगकर्ता के बेहद अनुकूल है। विशेष रूप से, एक बड़े पैमाने पर जांच के उद्देश्य के लिए, इस एकल मशीन इकाई में प्रति घंटे एक बैच के जांच की संख्या को काफी अधिक सीमा तक बढ़ाया जा सकता है।
इस जांच के बारे में चर्चा करते हुए, आईआईटी खड़गपुर के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर प्रोफेसर सुमन चक्रवर्ती ने कहा, "रोगी के नमूने की जांच के दौरान यह पेटेंट मशीन इकाई न केवल उपयुक्त साबित हुई है, बल्कि इसने अत्यंत लचीला और सामान्य होने का भी प्रदर्शन किया है। इसका मतलब यह हुआ कि कोविड -19 जांच के अलावा, ‘आइसोथर्मल न्यूक्लिक एसिड-आधारित जांच’ (आईएनएटी) की श्रेणी में आने वाले कई अन्य जांच, इस मशीन में किये जा सकतेहैं। दूसरे शब्दों में, इन्फ्लुएंजा, मलेरिया, डेंगू, जापानी एन्सेफलाइटिस, तपेदिक और कई अन्य संक्रामक बीमारियों, के साथ ही वेक्टर-जनित रोगों की जांचइस मशीन का उपयोग करके की जा सकती है। यह वस्तुतः एक आण्विक नैदानिक परीक्षण के अपेक्षित उच्च मानकों का त्याग किए बिना थर्मल साइक्लर्स या वास्तविक पीसीआर मशीनों की जरूरतों को कम करेगा।”
उन्होंने आगे कहा, “आज, यह कोविड -19 है। कल, यह कुष्ठ और तपेदिक था। आने वालेकल में, यह कुछ और होगा। यह तकनीक उच्च आण्विक निदान को प्रयोगशाला से निकाल कर लोगों के सामनेलाते हुए इन सभी बीमारियों की तेजी से और कम लागत पर पहचान करने की दिशा में एक क्रांति करने के लिए तैयार है। लिहाजा,इसका प्रभाव लंबे समय तक रहने वाला है क्योंकि यह आने वाले वर्षों में उन अप्रत्याशित महामारी का पता लगाने की क्षमता से लैस है, जो मानव जीवन को बार-बार खतरे में डाल सकता है।”
आईआईटी खड़गपुर के स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अरिंदम मोंडल के अनुसार, “मरीज के नमूनों की जांच के चरण के दौरान, विशेष रूप से आईआईटी खड़गपुर में विकसित सभी किटों को परीक्षण इकाई तक एक अनियंत्रित वातावरण में ले जाया गया, जोकि परीक्षण के लिए उपयोग किए जा रहे अभिकर्मकों की स्थिरता के उच्च स्तर को दिखाता है।”
‘कोविराप’ के व्यावसायीकरण के बारे में बोलते हुए, प्रोफेसर तिवारी ने कहा,“ यह संस्थान भले ही एक निश्चित स्तर तक इस जांच किट का उत्पादन कर सकता है, लेकिन पेटेंट लाइसेंसिंग चिकित्सा प्रौद्योगिकी कंपनियों के लिए व्यावसायीकरण के अवसरों को सुविधाजनक बनाएगा। कोई भी कॉरपोरेट या स्टार्ट-अप प्रौद्योगिकी लाइसेंस और व्यावसायिक पैमाने पर उत्पादन के लिए इस संस्थान से संपर्क कर सकता है। महामारी की वर्तमान स्थिति के बीच सार्वजनिक स्वास्थ्य के हितों की रक्षा के उचित उपायों के साथ यह संस्थान साझेदारी के लिए तैयार है।”