विलायती बबूल बना प्रदेश के ग्राम वासियों की अतिरिक्त आमदनी का जरिया
राजस्थान के वन क्षेत्र एवं वन्य जीव क्षेत्र के बाहर के इलाकों में बहुतायत में पाया जाने वाला विलायती बबूल जिसे वानिकी विज्ञान की भाषा में ’’प्रोसोपिस ज्यूलिफ्लोरा’’ कहते हैं, ग्रामवासियों की अतिरिक्त आमदनी का जरिया बन रहा है। विलायती बबूल की लकड़ी का बरसों से कोयला बनाने, सोने चांदी को शुद्ध करने व रसायनिक उर्वरक बनाने में उपयोग होता रहा हैं । देश की राजधानी दिल्ली में इस कोयले का बहुत बड़ा बाजार हैं ।
विलायती बबूल वन्य उपज है एवं इसके परिवहन हेतु परमिट की आवश्यकता होती है। यह राजस्थान के वन क्षेत्रें के बाहर ग्राम पंचायतों, चारागाहों एवं ग्रामवासियों के धरों, खेतों एवं बाड़ों में पाया जाता है । इस वृक्ष को चौरी छुपे कोयला बनाने व वन क्षेत्र के बाहर के सीधे-सादे ग्रामीणों से कोड़ी के भाव पर खरीद कर भारी मुनाफा कमाने वाले अनेक गिरोह व माफिया सक्रिय थे । इन गिरोहों की कमर तोड़ने व प्रदेश के ग्रामवासियों को राजस्व क्षेत्र यथा अपने खेतों, बंजर भूमि, बेकार पड़ी भूमि पर उगे विलायती बबूल से तैयार कोयले का उचित दाम दिला कर आमदनी बढ़ाने की व्यूह रचना वन विभाग के अधिकारियों, तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री एवं प्रदेश की मुख्य मंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे के नेतृत्व में तैयार की गई।
श्रीमती राजे ने गत वर्ष मार्च, 2016 में वन उपज माने जाने वाले विलायती बबूल सम्बधी नियमों को जन हित में उदार बनाने की धोषणा की व उसकी पालना में गत 24 मई, 2016 को वन विभाग द्वारा इस सम्बध में अधिसूचना भी जारी कर दी गई । इसके तहत गैर-वन भूमि से उत्पादित विलायती बबूल से बनाये गये कोयले को प्रदेश से बाहर बिक्री हेतु ले जाने के नियमों में शिथिलता प्रदान की गई है । अब प्रदेश के ग्रामवासी गैर-वन भूमि पर उगे विलायती बबूल से तैयार कोयले को जिले के भीतर कहीं भी बिक्री के लिये ले जाने हेतु पटवारी, पूरे राज्य में कहीं भी बिक्री के लिये ले जाने हेतु तहसीलदार एवं राज्य के भीतर कहीं भी या राज्य के बाहर ले जाकर बिक्री हेतु परमिट(पास) प्राप्त कर सकते हैं । पहले आम आदमी, किसानों एवं जन जाति के लोगों को विलायती बबूल से तैयार कोयले के परिवहन हेतु परमिट लेने हेतु पटवारी से लेकर कलक्टर के कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ते थे । अब इन वर्गों को परमिट मिलने की सरकारी लेट लतीफी प्रक्रिया से निजात मिली है ।
राज्य सरकार के इस कदम से अभिभूत वन विभाग के प्रधानमुख्य वन संरक्षक श्री ए0के0 गोयल का कहना कि इस निर्णय से एक तरफ जहॉ राज्य सरकार को चोरी छुपे विलायती बबूल के कोयले की तस्करी पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी वहीं अब नियमों के सरलीकरण से ग्रामवासियों व कोयला उत्पादन व बिक्री के व्यापार में लगे प्रदेशवासियों को कोयले का उचित मूल्य मिलने लगेगा । वही जैसे-जैसे जागरूकता बढ़ेगी वैसे-वैसे व्यापारियों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। इस व्यवसाय में ग्रामवासी से लेकर सभी श्रेणी के मंझले व लघु व्यवसायियों की आमदनी में इजाफा होगा ।
विलायती बबूल जहॉं ग्रामवासियों व किसानों के लिये जलाने की लकड़ी के रूप में एक अच्छा ईंधन है वहीं इसकी जलने की आंच भी तेज होती है साथ ही यह वृक्ष अगर खेत के चारों और मेड़ बनाकर लगाया जाये तो नील गाय व अन्य मवेशियों के प्रवेश पर भी रोक लगेगी व किसान अपनी फसलों का नुकसान होने से बचा सकते हैं । विलायती बबूल मिट्टी के कटाव को रोकता है यह हमेशा हरा रहता है साथ ही इसे पानी की कम आवश्यकता पड़ती है ।
विलायती बबूल फूल, तो कांटे भी विलायती बबूल जहॉ आमदनी का जरिया है वहीं इसके कुछ नुकसान भी हैं । यह वृक्ष अन्य देशी प्रजातियों को अपने आस-पास पनपने नहीं देता है क्योंकि यह एक जंगली पेड़ है इस लिए किसानों व ग्रामीणों को चाहिये कि वे इसे केवल जहॉ बंजर, बेकार या एकदम अनुपयोगी भूमि हो वहीं इसे फैलने देवे । एक बार पेड़ तैयार होने पर इसे जड़ से उपर तक काट कर जलाने में काम में लें या कोयला तैयार कर लें । थोड़े समय बाद यह पुनः प्रस्फुटित होकर पूर्ण वृक्ष का रूप लें लेता है व इससे कोयला तैयार कर निरन्तर आमदनी ली जा सकती है । यहॉं यह भी उल्लेखनीय है कि वन विभाग इसे बढ़ावा नहीं देता है, क्योंकि यह अपने मरूस्थलीय प्रदेश की प्राकृतिक वनस्पतियों को पनपने नहीं देता है ।
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News Source
DIPR Rajasthan