Ekal Vidyalayas or One Teacher Schools operating in villages is changing lives of village children. The methodology of teaching through games and stories has grown interest among the children towards education. After Ekal started its operation, the attendance in nearby government schools have also increased.
This is the story of Silli block under Ranchi district of Jharkhand. In a number of villages of this block many students, who had started their studies in Ekal Vidyalayas have gone for higher studies and after completion were able to get good employment opportunities.
In this story, Sunita (now 21 yrs), a resident of Kareydih village of the Silli block is now serving in the MGM Medical College & Hospital as a staff nurse. In the year 2004 to 2006 she was a regular student in Ekal Vidyalaya in the village. After this she was directly admitted to sixth grade in the local government school. Later she graduated passing the Jharkhand Academic Council examination. After graduation she took training for nursing, as she was always interested in community service. Passing out, once again, in first grade she got employment with ease.
Sunita's parents and she herself talk, without any hesitation, as to how Ekal has changed their life.
एकल की पूर्व छात्रा परिचारिका बनी
21 वर्षिय सुनीता कुमारी, झारखण्ड प्रांत के राँची ज़िलान्तर्गत सिल्ली प्रखण्ड के कारेयाडीह गांव की रहने वाली है। पूरा गांव सुनीता को मीरा कुमारी के नाम से जानता है। अभाव ग्रस्त जीवन में एकल विद्यालय से पढ़ाई शुरू कर परिचारिका की पढ़ाई पूरी की और वर्ष 2016 के जून माह से एम. जी. एम मेडिकल काॅलेज एवं हाॅस्पिटल जमशेदपुर में स्टाफ नर्स के रूप में अपनी सेवा दे रही है।
मीरा नौ वर्ष की अवस्था में कारेयाडीह ग्राम के एकल विद्यालय में पढ़ने आई थी। वैसे तो वहां सरकारी विद्यालय भी थे परन्तु पढ़ाई में अरूची व संकोच बस उसे उन सरकारी विद्यालयों ने आर्कषित नहीं किया। एकल में खेलते-कूदते बच्चे, गीत नृत्य करते बच्चे, कहानी सुनते बच्चों को देख उसका भी मन उन बच्चों के बीच रम गया और एकल विद्यालय ही उसकी ज्ञान व शिक्षा का माध्यम बन गया। समय के साथ एकल के माध्यम से मीरा के जीवन में आत्मविश्वास के जो बीज़ अंकुरित हुए वह आज के दिन में एक वृक्ष का रूप ले लिया है। वर्ष 2004 से वर्ष 2006 तक नियमित छात्रा के रूप में अपने गांव में चलने वाले एकल विद्यालय की प्रतिभावान छात्रा के रूप में पढ़ाई पूरी की।
दो वर्षों तक एकल विद्यालय में पढ़ाई करके अपने गांव कारेयाडीह स्थित राजकीय मध्यविद्यालय में सीधे षष्ठम कक्षा में नामांकन कराया। अंक ज्ञान हो या भाषा ज्ञान या फिर सामान्य ज्ञान आदि की जानकारी इसे थी। इसलिए सरकारी विद्यालय में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर अन्य छात्रों की तुलना में सुश्री मीरा जल्दी दे पाती थी। वर्ष 2010 में आदर्श बालिका उच्च विद्यालय पतराहातु से झारखण्ड ऐकेडमिक कौंसिल राँची के परीक्षा मेेंं शामिल हुई, जिसमें वह 77 प्रतिशत अंक प्राप्त कर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई। जैक राँची से इण्टरमीडिएट की परीक्षा वर्ष 2012 सम्मिलित हुई और अपनी मेहनत के बल पर 62 प्रतिशत अंकों के साथ पुनः प्रथम श्रेणी से उत्र्तीण हुई। उसकी आगे बढ़ने की ललक और समाज सेवा की इच्छा ने इसे परिचारिका नर्स बना डाला। इंटर की पढ़ाई के उपरांत इस बालिका ने जमशेदपुर के टी. एम. सी. से परिचारिका नर्स की पढ़ाई प्रथम श्रेणी से उत्र्तीण प्रथम समेस्टर की। वर्ष 2013 में 78.8 प्रतिशत अंक प्राप्त किये। द्वितीय समेस्टर वर्ष 2014 में 76.6 प्रतिशत अंक और वर्ष 2015 में ;तृतीय व अंतिम वर्ष की परीक्षा मेंद्ध 83.5 प्रतिशत अंक के साथ एकल की सुश्री मीरा ने नर्स के कोर्स को पूरा करने में परचम लहराई। नर्स की परीक्षा झारखण्ड नर्सिंग एवं शोध केन्द्र राँची ;श्रछत्ब्द्ध द्वारा आयोजित की गयी थी।
मीरा के माँ-पिता का कहना है कि कभी स्कूल से डरने वाली बेटी आज एकल की वजह से ही यहाँ तक पहुँची है। एकल विद्यालय ने बच्चों को सही-दिशा प्रदान की जाती है। पढ़ाई के प्रति अरूचि को रूचि जागृत कर देती है, जिससे कि बच्चों को पढ़ाई करना रूचिकर लगने लगता है। यही कारण है कि पिछडे़ गांव की मेरी बेटी एकल गौरव विकसित शहर जमशेदपुर के अस्पताल में नर्स की सेवा प्रदान कर रही है। स्वयं मीरा कुमारी कहती है- एकल ने आज मुझे अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया। स्कूल जाने के डर व भय को एकल ने ही भगाया था और पढ़ाई को मेरे जीवन का लक्ष्य बना दिया था। मैं सुबह का इंतज़ार करती थी कि कब स्कूल जाना है चुकिं खेल के साथ पढ़ाई मेरे लिए आनंददायी विषय बनता जा रहा था। मेरे जीवन में एकल विद्यालय का अद्भुत योगदान है, जिन्होंने मेरे बचपन को इस प्रकार के साँचे में ढ़ाल दिया कि मैं जीवन-पर्यन्त सेवा कार्य में जुटी रहूँगी।
तत्कालीन एकल विद्यालय कारेयाडीह के आचार्य कर्ण महतो कहते हैं कि कारेयाडीह एकल विद्यालय से मेरे द्वारा पढ़ाए गए लगभग 10-11 छात्र-छात्रा प्रतिष्ठित स्थानों पर पहुँच गए है। जहाँ कल्पना कुमारी बी. टेक की वहीं सुश्री मीरा कुमारी नर्स बनी। शशोधर हो या प्यारे लाल डिप्लोमा इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की तो गुड़िया कुमारी, मीरा कुमारी, रानी कुमारी स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की। इन सब एकल गौरव को देखकर मैं गौरवान्वित महसूस करता हूँ। मेरा विश्वास एकल के साथ दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। कर्ण महतो सम्प्रति एकल अभियान के सेवाव्रती पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में रांची भाग के प्राथमिक विद्यालय के प्रशिक्षण प्रमुख के रूप में कार्यरत है।