28 अगस्त, 2016 को आकाशवाणी पर प्रधानमंत्री के ‘मन की बात ’ कार्यक्रम के मूल पाठ से....
मेरे प्यारे देशवासियों, कुछ बातें मुझे कभी-कभी बहुत छू जाती हैं और जिनको इसकी कल्पना आती हो, उन लोगों के प्रति मेरे मन में एक विशेष आदर भी होता है। 15 जुलाई को छत्तीसगढ़ के कबीरधाम ज़िले में करीब सत्रह-सौ से ज्यादा स्कूलों के सवा-लाख से ज़्यादा विद्यार्थियों ने सामूहिक रूप से अपने-अपने माता-पिता को चिट्ठी लिखी। किसी ने अंग्रेज़ी में लिख दिया, किसी ने हिंदी में लिखा, किसी ने छत्तीसगढ़ी में लिखा, उन्होंने अपने माँ-बाप से चिट्ठी लिख कर के कहा कि हमारे घर में Toilet होना चाहिए। Toilet बनाने की उन्होंने माँग की, कुछ बालकों ने तो ये भी लिख दिया कि इस साल मेरा जन्मदिन नहीं मनाओगे, तो चलेगा, लेकिन Toilet ज़रूर बनाओ। Iसात से सत्रह साल की उम्र के इन बच्चों ने इस काम को किया। और इसका इतना प्रभाव हुआ, इतना emotional impact हुआ कि चिट्ठी पाने के बाद जब दूसरे दिन school आया, तो माँ-बाप ने उसको एक चिट्ठी पकड़ा दी Teacher को देने के लिये और उसमें माँ-बाप ने वादा किया था कि फ़लानी तारीख तक वह Toilet बनवा देंगे। जिसको ये कल्पना आई, उनको भी अभिनन्दन, जिन्होंने ये प्रयास किया, उन विद्यार्थियों को भी अभिनन्दन और उन माता-पिता को विशेष अभिनन्दन कि जिन्होंने अपने बच्चे की चिट्ठी को गंभीर ले करके Toilet बनाने का काम करने का निर्णय कर लिया। यही तो है, जो हमें प्रेरणा देता है।
कर्नाटक के कोप्पाल ज़िला, इस ज़िले में सोलह साल की उम्र की एक बेटी मल्लम्मा - इस बेटी ने अपने परिवार के ख़िलाफ़ ही सत्याग्रह कर दिया। वो सत्याग्रह पर बैठ गई। कहते हैं कि उन्होंने खाना भी छोड़ दिया था और वो भी ख़ुद के लिए कुछ माँगने के लिये नहीं, कोई अच्छे कपड़े लाने के लिये नहीं, कोई मिठाई खाने के लिये नहीं, बेटी मल्लम्मा की ज़िद ये थी कि हमारे घर में Toilet होना चाहिए। अब परिवार की आर्थिक स्थिति नहीं थी, बेटी ज़िद पर अड़ी हुई थी, वो अपना सत्याग्रह छोड़ने को तैयार नहीं थी। गाँव के प्रधान मोहम्मद शफ़ी, उनको पता चला कि मल्लम्मा ने Toilet के लिए सत्याग्रह किया है, तो गाँव के प्रधान मोहम्मद शफ़ी की भी विशेषता देखिए कि उन्होंने अठारह हज़ार रुपयों का इंतज़ाम किया और एक सप्ताह के भीतर-भीतर Toilet बनवा दिया। ये बेटी मल्लम्मा की ज़िद की ताक़त देखिए और मोहम्मद शफ़ी जैसे गाँव के प्रधान देखिए। समस्याओं के समाधान के लिए कैसे रास्ते खोले जाते हैं, यही तो जनशक्ति है I
मेरे प्यारे देशवासियों, ‘स्वच्छ-भारत’ ये हर भारतीय का सपना बन गया है। कुछ भारतीयों का संकल्प बन गया है। कुछ भारतीयों ने इसे अपना मक़सद बना लिया है। लेकिन हर कोई किसी-न-किसी रूप में इससे जुड़ा है, हर कोई अपना योगदान दे रहा है। रोज़ ख़बरें आती रहती हैं, कैसे-कैसे नये प्रयास हो रहे हैं। भारत सरकार में एक विचार हुआ है और लोगों से आह्वान किया है कि आप दो मिनट, तीन मिनट की स्वच्छता की एक फ़िल्म बनाइए, ये Short Film भारत सरकार को भेज दीजिए, Website पर आपको इसकी जानकारियाँ मिल जाएंगी। उसकी स्पर्द्धा होगी और 2 अक्टूबर ‘गाँधी जयंती’ के दिन जो विजयी होंगे, उनको इनाम दिया जाएगा। मैं तो टी.वी. Channel वालों को भी कहता हूँ कि आप भी ऐसी फ़िल्मों के लिये आह्वान करके स्पर्द्धा करिए। Creativity भी स्वच्छता अभियान को एक ताक़त दे सकती है, नये Slogan मिलेंगे, नए तरीक़े जानने को मिलेंगे, नयी प्रेरणा मिलेगी और ये सब कुछ जनता-जनार्दन की भागीदारी से, सामान्य कलाकारों से और ये ज़रूरी नहीं है कि फ़िल्म बनाने के लिये बड़ा Studio चाहिए और बड़ा Camera चाहिए; अरे, आजकल तो अपने Mobile Phone के Camera से भी आप फ़िल्म बना सकते हैं। आइए, आगे बढ़िए, आपको मेरा निमंत्रण है।