प्लास्टिक और ई-कचरा समेत सभी तरह के कचरे को लाइट डीजल तेल में बदला जा सकता है जिसका इस्तेमाल भट्टी जलाने में होता है
भारतीय रेलवे ने कचरे से ऊर्जा उत्पादन में देश के पहले सरकारी संयंत्र की स्थापना ईस्ट कोस्ट रेलवे में भुवनेश्वर के मानचेस्वर कैरिज रिपेयर वर्कशॉप में की है, जिसकी क्षमता प्रतिदिन 500 किलोग्राम कचरा है। इसका उद्घाटन 22 जनवरी 2020 को ईस्ट कोस्ट रेलवे के महाप्रबंधक के साथ श्री राजेश अग्रवाल, सदस्य रोलिंग स्टॉक ने किया। कचरा से ऊर्जा उत्पादन के इस संयंत्र का निर्माण तीन महीने में किया गया है।
कचरे से ऊर्जा उत्पादन का यह संयंत्र पेटेंटकृत प्रौद्योगिकी है जिसे पॉलीक्रैक कहा जाता है। यह भारतीय रेलवे में अपनी तरह का पहला और भारत में चौथा संयंत्र है। यह दुनिया की पहली पेटेंटकृत विषम उत्प्रेरक प्रक्रिया है जो विभिन्न तरह के कचरे को हाइड्रोकार्बन तरल ईंधन, गैस, कार्बन और पानी में बदल देती है। पॉलीक्रैक संयंत्र में सभी तरह के प्लास्टिक, पेट्रोलियम अपशिष्ट, 50 प्रतिशत तक की नमी वाले मिले हुए ठोस कचरे एमएसडब्ल्यू (नगरपालिका ठोस कचरा), ई-कचरा, ऑटोमोबाइल कचरा, बांस, बगीचे के कचरे इत्यादि सहित सभी जैविक कचरे और जेट्रोफा फल डाले जा सकते है। मानचेस्वर कैरिज रिपेयर वर्कशॉप, कोच डिपो और भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन से निकले कचरे इस संयंत्र के लिए फीडर मैटेरियल होंगे।
यह प्रक्रिया एक बंद लूप सिस्टम है और यह वायुमंडल में किसी भी खतरनाक प्रदूषक का उत्सर्जन नहीं करता है। पूरे सिस्टम को ऊर्जा प्रदान करने के लिए इस ज्वलनशील, गैर-संघनित गैसों का फिर से उपयोग किया जाता है। इस प्रकार गैसीय ईंधन के जलने से एकमात्र उत्सर्जन आता है। इस प्रक्रिया में दहन से निकलने वाला उत्सर्जन निर्धारित पर्यावरणीय मानदंडों से बहुत कम होता है। यह प्रक्रिया लाइट डीजल तेल के रूप में ऊर्जा उत्पादन करेगा जिसका इस्तेमाल भट्टियां जलाने में होता है।
पॉलीक्रैक प्रौद्योगिकी की विशेषताएं –
ठोस कचरे के निपटान के लिए पारंपरिक तरीके पर पॉलीक्रैक के निम्नलिखित लाभ हैं: -
- कचरे को अलग-अलग करने की जरूरत नहीं है, इसे जैसा इकट्ठा किया गया है वैसे ही सीधे पॉलीक्रैक में डाला जा सकता है।
- इसमें कचरे को सुखाने की आवश्यकता नहीं है।
- कचरे को 24 घंटे के भीतर प्रसंस्कृत किया जाता है।
- इसमें बंद इकाई में काम होता है जिससे काम करने का वातावरण धूल रहित होता है।
- संयंत्र के आसपास वायु की उत्कृष्ट गुणवत्ता होती है।
- कचरे का जैविक अपघटन नहीं किया जाता है क्योंकि कचरे को जिस रूप में लाया जाता है उसी रूप में उसका इस्तेमाल किया जाता है।
- इस संयंत्र का आधार छोटा होता है इसलिए प्रसंस्करण की पारंपरिक विधि की तुलना में संयंत्र को स्थापित करने के लिए कम जगह की जरूरत होती है।
- कचरे के सभी घटक मूल्यवान ऊर्जा में परिवर्तित हो जाते हैं, जिससे यह शून्य निस्सरण प्रक्रिया बन जाती है।
- इस प्रक्रिया से उत्पन्न गैस का उपयोग व्यवस्था को ऊर्जा प्रदान करने के लिए फिर से किया जाता है जिससे यह आत्मनिर्भर हो जाता है और परिचालन लागत में भी कमी आती है।
- प्रक्रिया के दौरान परंपरागत तरीकों के विपरीत कोई वायुमंडलीय उत्सर्जन नहीं होता है। सिर्फ गैसों के जलने की स्थिति में प्रदूषक निकलते हैं जो दुनिया भर में निर्धारित मानदंडों से कम होते हैं।
- अन्य विकल्पों की तुलना में यह लगभग 450 डिग्री के आसपास संचालित होने वाली कम तापमान की प्रक्रिया होती है।
- अंतर्निहित सुरक्षा सुविधाओं से युक्त इस मशीन को अकुशल लोग भी संचालित कर सकते हैं।
- मशीन की पूंजी लागत और परिचालन लागत कम है।
- पूरी तरह से स्वचालित मशीन के लिए न्यूनतम श्रम शक्ति की जरूरत है।
पुरस्कार और मान्यता -
इस प्रक्रिया को 2007 में लॉकहीड मार्टिन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा सर्वश्रेष्ठ नवाचार गोल्ड मेडल, 2008 में सर्वश्रेष्ठ नवाचार गोल्ड मेडल, 2009 में सर्वश्रेष्ठ नवाचार गोल्ड मेडल, 2008 में टेक-म्यूज़ियम पुरस्कार के लिए नामांकित, फ्रॉस्ट एंड सुलिवन – वैश्विक नवाचार एवं नेतृत्व पुरस्कार -2011 और आईजीसीडब्ल्यू-2011 – सर्वश्रेष्ठ ग्रीन केमिस्ट्री इनोवेशन अवार्ड से सम्मानित किया गया।
कचरे से ऊर्जा उत्पादन संयंत्र का संक्षिप्त विवरण -
- कुल संयंत्र स्थापना लागत : 1.79 करोड़ रु
- संयंत्र शुरु करने की तारीख : 22 जनवरी 2020
- उप-उत्पादों से अनुमानित आय: 17.5 लाख रु. प्रति वर्ष
- रखरखाव की लागत: 10.4 लाख रु. प्रति वर्ष
- क्षमता : 500 किग्रा / बैच