पिछले एक दशक में झारखंड के गांवों में व्यापक बदलाव आया है. इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था काफी मजबूत हुई है. इस बदलाव में राज्य में गठित सखी मंडलों की अहम भूमिका है. आमतौर पर लोगों की यह धारणा है कि सखी मंडल से जुड़ी महिलाएं मुख्यतः साप्ताहिक बचत करती हैं, लेकिन गांवों की ये महिलाएं अपनी आजीविका सशक्त करने के लिए इसके अलावा बहुत कुछ कर रही हैं. अपने-अपने समूह से ऋण लेकर ये महिलाएं खेती- किसानी से लेकर उद्यमिता के क्षेत्र में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. अधिकतर अशिक्षित या बमुश्किल प्राइमरी स्कूल पास ये महिलाएं अपने बुलंद हौसले, मेहनत और लगन की बदौलत सफल उद्यमी के रूप में अपनी पहचान बना रही हैं.
1. अशिक्षित चिंता देवी हैं सफल व्यवसायी
लातेहार जिले के कुरा गांव निवासी चिंता देवी आज एक सफल उद्यमी हैं. इनकी कहानी इस मायने में काफी दिलचस्प है कि इन्होंने पुरुषों के पारंपरिक व्यवसाय को सफलतापूर्वक अपना कर महज तीन साल के अंदर अपना खास मुकाम बनाया है. आज उनके द्वारा उत्पादित डिस्टिल वाटर व टॉयलेट क्लीनर की क्षेत्र में अच्छी-खासी मांग है. इनका व्यवसाय राज्य के पांच जिलों में है.
2017 में शुरु हुआ डिस्टिल वाटर व टॉयलेट क्लीनर का व्यवसाय
पिछले 15 वर्षों से उनके पति डाल्टेनगंज स्थित नवोदय आवासीय विद्यालय में रसोइया का काम करते हैं, लेकिन उनकी आमदनी से परिवार के सात सदस्यों का गुजारा मुश्किल से होता था. इसलिए अपनी स्थिति बेहतर करने के लिए चिंता देवी ने अपनी सखी मंडल दीप महिला आजीविका स्वयं सहायता समूह से ऋण लेकर जनवरी 2017 में डिस्टिल वाटर व टॉयलेट क्लीनर का व्यवसाय शुरू किया. इस क्रम में उन्होंने सबसे पहले अपना मकान दुरुस्त करवाया. अगले ही महीने 40 हजार की मशीनें खरीदीं. साथ ही अपनी बचत से निवेश कर केमिकल खरीद कर एक सप्ताह के भीतर उत्पादन कार्य भी शुरू कर दिया. इसके लिए उन्होंने एक कारीगर को बुलाकर मशीनें लगवाईं और उससे एक सप्ताह तक डिस्टिल वाटर व टॉयलेट क्लीनर बनाने का प्रशिक्षण लिया. फिर उन्होंने तीन और महिलाओं को प्रशिक्षित कर अपने घर में ही उत्पादन कार्य शुरू किया दिया.
प्रति माह औसतन 30 हजार रुपये का हो रहा मुनाफा
इस काम की प्रेरणा उन्हें अपने देवर से मिली, जो मोहम्मदगंज, पलामू में डिस्टिल वाटर व टॉयलेट क्लीनर बनाकर बेचते हैं. चिंता देवी को शुरुआती छह महीने में खास मुनाफा नहीं हुआ, लेकिन धीरे-धीरे व्यवसाय ने जोर पकड़ा, जिससे बिक्री बढ़ने लगी. जहां वह एक, दो और पांच लीटर डिस्टिल वाटर क्रमशः 6, 10 और 30-35 रुपये थोक मूल्य पर बेचती हैं, वहीं आधा और एक लीटर टॉयलेट क्लीनर क्रमशः 10 और 20 रुपये में बेचती हैं. इससे वह हर महीने औसतन 30 हजार रुपये का मुनाफा कमाने लगीं. किसी महीने अधिक मांग होने पर 40-50 हजार रुपये तक का लाभ हो जाता है.
मुझे पहचान दिलाने में सखी मंडल की अहम भूमिका : चिंता देवी
अपनी सफलता का श्रेय सखी मंडल को देते हुए चिंता देवी कहती हैं कि सखी मंडल से जुड़कर सचमुच मेरे जीवन में व्यापक बदलाव आया है. अपनी छोटी-मोटी जरूरतों को पूरा करने से लेकर अपने व्यापार को बढ़ाने तक सखी मंडल का भरपूर सहयोग मिला. समूह से करीब 13 छोटे-बड़े ऋण लिए. व्यवसाय में हुए मुनाफे की बदौलत सारे ऋण वह चुकता कर चुकी हैं. दो बेटियों की अच्छे घरों में शादी की. अब कारोबार भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है. आज इस बात का गर्व है कि समाज में अपनी एक पहचान है और परिवार खुशहाल जिंदगी जी रहा है.
2. बुलंद हौसलों वाली अजमेरी खातून बनीं बेकरी फैक्ट्री की मालकिन
गिरिडीह जिला अंतर्गत बेंगाबाद प्रखंड स्थित चपुआडीह पंचायत के मुंडहरी गांव निवासी अजमेरी खातून एक कामयाब उद्यमी हैं. सनम बेकरी नाम से बेकरी फैक्ट्री चलाती हैं. इस काम के लिए उनके पति ने काफी सहयोग किया, क्योंकि उनके पति काफी अरसे से बेकरी व्यवसाय से जुड़े रहे हैं और अलग-अलग बेकरी फैक्ट्री में काम कर चुके हैं.
वर्ष 2019 में आया बड़ा बदलाव
अजमेरी का 14 सदस्यों का एक बड़ा परिवार है, जिसका खर्च थोड़ी-बहुत खेती और उनके पति के छोटे बेकरी व्यवसाय से जैसे-तैसे चलता था. हालांकि वे अपने पति के साथ मिलकर बेकरी व्यवसाय को बढ़ाना चाहती थीं, लेकिन उनके पास इतनी पूंजी नहीं थी. फिर जनवरी 2016 में वे जमजम आजीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़ीं और छोटा-बड़ा ऋण लेकर कारोबार को धीरे- धीरे आगे बढ़ाना शुरू किया, लेकिन असल बदलाव साल 2019 में आया, जब जेएसएलपीएस के एसवीइपी (सोशल स्टार्टअप विलेज इंटरप्रेन्योरशिप प्रोग्राम) डोमेन के ओरिएंटेशन टीम ने इनकी सखी मंडल में आकर एक बैठक की. इस बैठक में इच्छुक उद्यमियों को मिलने वाले लाभ खासकर लोन के बारे में बताया गया. अजमेरी तो ऐसे मौके की तलाश में थीं ही, सो उन्होंने झट से इसके लिए आवेदन कर दिया. सारी प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद उन्हें उसी साल 50,000 रुपये का लोन मिला. इस राशि और पहले की बचत को मिलाकर उन्होंने अपने पति के सहयोग से अपने घर में ही एक बेकरी फैक्ट्री खोल ली.
हर महीने करीब 70 हजार रुपये की होती है आमदनी
अजमेरी के पति पहले से ही इस व्यवसाय से जुड़े हैं और उनकी अच्छी- खासी जान-पहचान भी है. इसलिए फैक्ट्री खुल जाने से उन्हें पहले के मुकाबले ज्यादा ऑर्डर मिलने लगे. इससे उनकी आमदनी में काफी बढ़ोतरी हुई है. फिलहाल वे गिरिडीह और देवघर जिले के अलावा बिहार के जमुई जिले के 80 खुदरा दुकानदारों को नियमित रूप से बेकरी आपूर्ति करती हैं. प्रतिदिन के हिसाब से उन्हें लगभग 2000 रुपये और हर महीने 60-70 हजार रुपये का मुनाफा हो जाता है. अगर उत्पादों की बात करें, तो इनकी फैक्ट्री में बने जीरा बिस्किट, नमकीन बिस्किट, पाव, स्लाइस ब्रेड, क्रीम रोल, पेस्ट्री, बर्थडे केक और फ्रूट केक आदि काफी मशहूर हैं.
यह समाचार प्रभात खबर में पंचायतनामा से साभार. पूरे समाचार को प्रभात खबर में पढ़े... (लिंक नीचे दिया है)