मलेरिया एवं डायरिया मुक्त 'एकल' गाँव

Read this story of "Taregan Tola" in an Ekal village which has become free of Malaria and Diarrhoea, the dreaded disease in remote areas. All because the Arogya Wing of Ekal convinced all its residents (some 300) to make soak pits, use mosquito nets and keep their area clean. Now every household is connected with the soak pit. Enjoy reading and know how this model is effective and can be easily replicated elsewhere. This village is about 70 kms away from Jharkhand capital city Ranchi.

एकल अभियान आरोग्य प्रकल्प के माध्यम से सोखता गड्ढा कार्य द्वारा मलेरिया एवं डायरिया मुक्त गाँव का विकास हुआ है। गाँव के एक टोले में घर-घर सोखता गड्ढा का निर्माण एक अद्भुत जागरूकता पैदा किया है। टोला साफ-सुथरा तो है हीखास बात तो यह है कि मलेरिया एवं डायरिया से मुक्ति मिलने की उत्साह की खुशी ज्यादा है।

यह गाँव झारखण्ड की राजधानी रांची से लगभग 70 कि.मी. पश्चिम दिशा में लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखण्ड की अंतिम सीमा पर पोढ़ गाँव का ‘‘तरेगन टोला’’ है।

तरेगन टोला में लगभग 35 घर हैं। जिसमें लगभग 20 सोखता गड्ढा बने हैं। प्रत्येक घर सोखता गड्ढा से जुड़ा हुआ है। एक सोखता गड्ढे से कहीं-कहीं दो-दो घर जुड़े हैं। गाँव के लोग सार्वजनिक चापानल के पास भी सोखता गड्ढा का निर्माण बखूबी स्वयं मेहनत एवं साधन-संग्रह जुटा कर किये हैं। अपनी दिनचर्या जैसे-स्नान करनाबर्तन धोनाकपड़ा धोनाआदि के प्रयोग में लाए गए पानी का प्रबंध कुछ इस प्रकार किया गया है कि वह देखते ही बनता है। प्रयोग में किया गया पानी का अवशिष्ट बेकार बनकर यूँ ही न तो नाली में बहता है और न कहीं सड़क पर जमाव होता है। सब सोखता गड्ढा में सुरक्षित चला जाता है।

क्या है सोखता गड्ढा?

अपनी दिनचर्या के प्रयोग में लाये गए पानी जैसे- स्नान करनाकपड़ा धोनाखाना बनाने हेतु बर्तन धोने आदि के प्रयोग में लाए गए पानी को सूखते रहने के लिए

4’/3’ का गड्ढ़ा करके उसमें बालू डालकर उस गड्ढे की ईंट से जुड़ाई की जाती है। इसके बाद बाँस से निर्मित ढक्कन से ढक कर उसके उपर पर्याप्त मिट्टी से बंद कर समतल कर देते हैं। इसमें एक नलीनुमा छिद्र पानी की निकास की नाली से जुड़ा रहता है तथा घरेलू प्रयोग में किए गए पानी का अवशेष उसी गड्ढे में गिरता रहता हैं जिसमें एकत्रित पानी सूखता रहता है।

सोखता गड्ढा से क्या-क्या हैं फायदे?

जैसा कि गाँव वालों ने बताया कि सोखता गड्ढा के माध्यम से गाँव में स्वच्छता का वातावरण बनता है। साफ-सुथरा तथा बिना कीचड़ का गाँव दिखता है। यत्र-तत्र -सर्वत्र जल जमाव नहीं होता है। जिससे मच्छर पैदा ही नहीं होते हैं। मच्छर के न होने के कारण मलेरिया नहीं होता है। डायरिया के प्रकोप से गाँव मुक्त हो जाते हैं। जमीन में जल स्तर नियंत्रित रहता है।

तरेगन टोला एकल विद्यालय की ग्राम प्रमुख लक्ष्मी उरांव बताती है कि-वर्ष 2016 में इस टोला में एकल विद्यालय के साथ एकल आरोग्य प्रकल्प का भी काम शुरू हुआ।

पहले इस गाँव में सोखता गड्ढा नहीं हुआ करता था। जिस कारण प्रत्येक घर के आस-पास पानी जमता था। कीचड़ हो जाया करता था। जिस कारण कीड़ा एवं मच्छर उत्पन्न होते थे। फलस्वरूप गाँव में मलेरिया एवं डायरिया का प्रकोप होता रहता था। लेकिन वर्ष 2016 से जब से इस टोला में सोखता गड्ढा बनाना प्रारम्भ हुआ हैतब से मच्छर एवं मलेरिया पर नियंत्रण हो गया है। अब तरेगन टोला मलेरिया एवं डायरिया से मुक्त हो गया है।

इस टीले में लगभग 300 व्यक्ति महिलापुरुष मिलकर निवास करते हैं। गत 2016 से 2019 तक में एक भी व्यक्ति मलेरिया एवं डायरिया का शिकार नहीं हुआ है।

स्वस्थ रहने की सामूहिक शपथ-

तरेगन टोले में सबलोग मच्छरदानी का प्रयोग करना शुरू कर दिये हैं। महिलाएं अपने घर को स्वच्छ साफ-सुथरा रखने एवं पूरे परिवार को स्वस्थ रखने के लिए प्रत्येक गुरूवार को सामूहिक शपथ लेती हैं। जिसके भाव इस प्रकार हैं-

               ‘‘परिवार के प्रत्येक लोग प्रतिदिन स्नान करेंगेसाफ कपड़ा पहनेंगेबच्चों का नाखून काटेंगे।
                सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करेंगेपानी उबाल कर पीयेंगे।
                जल जमाव वाले गड्ढे को मिट्टी से भरेंगेगर्भवती महिलाओं का प्रसव अस्पताल में ही करायेंगे।
                बच्चों का सम्पूर्ण टीकाकरण कराएंगेखाने से पहले एवं शौच के बाद साबुन से हाथ धोएंगे।
                पहला बच्चा एवं दूसरे बच्चे को जन्म देने में 3 साल का अंतर रखेंगे।
                 दूसरे बच्चे के जन्म लेने के बाद परिवार नियोजन का आपरेशन करायेंगे।’’

स्वच्छता हेतु सामुहिक शपथ लेते गाँव की महिलाएं इस टोला में सड़क के किनारे सार्वजनिक चापानल हैंजिसे एकल आरोग्य प्रकल्प समिति ने मिलकर अपनी व्यवस्था से उस नल के पास सोखता गड्ढा का निर्माण किया है। इस स्थान पर ही गाँव वासी तपेश्वर जी कहते हैं इस चापानल के पास पहले पर्याप्त मात्रा में पानी का जमाव होता था। लेकिन एक साल से सोखता गड्ढा बने होने से चापानल कीचड़ मुक्त है। इस टोला के सब लोग इसी से पानी पीते हैं। सोखता गड्ढा बनने से चापानल में भी जल का स्तर बढ़ गया है। तरेगन टोला में कचरा गड्ढा का भी निर्माण हुआ है। इस कचरे को सूखा कर राख बना दिया जाता है। जिसे अपनी-अपनी पोषण वाटिका में राख का छिड़काव करते हैं।

औषधीय पौधे- इस टोला में औषधीय पौधे भी लगे हैं। जैसे तुलसी पौधाएलोवीरानीमअमृतासिंदवारजहोजूहीजाबा कुसुमगेंदा फूलमुनगा ;सहजनद्धअपामार्गवासक आदि। ऐसे औषधीय पौधे सर्दी खांसी
बुखार महिला जनित बीमारीबावासीरदर्दश्वेत प्रदरखुजली आदि की बीमारी में काम आते है। इन औषधीय पौधों के बारे में एकल आरोग्य प्रकल्प की संयोजिका एवं ग्राम सेविका घर-घर जाकर एवं ग्राम समिति की बैठक में स्वस्थ रहने के लिए औषधीय पौधे एवं उनके उपयोग करने की विधि की जानकारी देती हैं।

इस टोले के घर-घर में शौचालय है तो घर-घर में पोषण वाटिका भी है। पोषण वाटिका में पपीताझींगीनेनुवाकद्दूटमाटरसेमबोदीपरवलआलूओलबांस आदि की उपज करते हैं। ग्रामवासी तपेश्वर जी कहते हैं- हम सब गाँव वाले अब राहत की सांस ले रहे हैं। गाँव वासी पहले बहुत परेशान थे मलेरिया एवं डायरिया से ग्रसित थे काफी पैसा खर्च होता था। यहाँ तक कि जमीन बेचकर परिवार वालों का इलाज कराते थे कुछ बचते थेतो कुछ मर जाते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। मलेरिया-डायरिया मुक्त तरेगन टोला हो गया है।

मलेरिया एवं डायरिया मुक्त एकल गाँव -

तरेगन टोला अर्थात पोढागाँव के सात टोले में एक टोला। यह गाँव झारखण्ड राज्य के लोहरदगा जिलान्तर्गत भंडरा प्रखण्ड में अवस्थित है। इस टोले में वर्ष 2016 में एकल विद्यालय प्रारम्भ हुआ । इस विद्यालय की आचार्या एतवारी उरांव बताती हैं कि अभी तक इस विद्यालय से 60 बच्चे पढ़ चुके हैं। वर्तमान में 30 बच्चे  एकल विद्यालय में पढ़ रहे हैं। इस विद्यालय की ग्राम प्रमुख श्रीमती लक्ष्मी उरांव बताती हैं कि गाँव के जो बच्चे यूँ ही खेलते-कूदते थे वह अच्छे संस्कार के साथ पढ़ने लगे हैं। गाँव की ही श्रीमती बँधनी देवी कुड़ुख भाषा में बोलती है- ‘‘अकुन एकल विद्यालय शुरूमन जा आ, बारीति छोटे खदर हेड हेखन मूनआ राखी, किताब पेन धर आर की एकल विद्यालय कानर पढ़ागे’’,

अर्थात्-इस गाँव में जब से एकल विद्यालय शुरु हुआ है तब से गाँव के बच्चे पैर-हाथ धोकर कलमकिताबकॉपीस्लेट लेकर एकल विद्यालय में पढ़ने जाते हैंयह पहले नहीं होता था।  

गाँव की श्रीमती सुमित्रा उरांव एवं तपेश्वर लोहरा बताते हैं कि एकल विद्यालय में संस्कार सीखने का विशेष मौका मिलता है। बच्चों का विचार राष्ट्रीयता से जुड़ जाता है। बच्चों में बदलाव आता हैअनुशासन एवं शिष्टाचार सीखते हैं। जो बच्चे एकल विद्यालय में पढ़ने जाते हैं वे खराबवाणी नहीं बोलते हैंगाली-गलौज नहीं करते हैं। गाँव में एकल विद्यालय का होना जरूरी है। जो कुछ एकल विद्यालय में सिखाया जाता हैवह अन्य स्कूलों में नहीं सिखाया जाता। एकल विद्यालय की शिक्षा सम्पूर्ण गाँव के विकास के लिए जरूरी है। इसका परिणाम वर्तमान में दिखाई दे रहा है एवं भविष्य में भी दिखाई देगा।

गाँव में ऐसी है अद्भुत प्रतिभा

माथे पर विशाल दो लंबी-लंबी जटाएँ आकर्षण का केन्द्र है। इनका वास्तविक नाम मलार लोहार है। 80 वर्षीय बैद्य का मुख्य पेशा है साँप पकड़ने का। साँप काटने पर मंत्र द्वारा ठीक करनेपागल कुत्ता के काटने पर उसे मंत्र एवं जड़ी बूटी दवा आदि से ठीक करने का। जब ये तीस वर्ष की आयु में थे तब से ही यानि 50 वर्षों में लगभग 3 हजार व्यक्तियों को साँप काटने पर मंत्र से झाड़ कर जान बचाये हैं। जबकि 100 व्यक्तियों को पागल कुत्ता काटने से मंत्र एवं दवा के द्वारा ठीक करने का दावा करते हैं। इनका पुत्र तपेश्वर लोहरा कहता है साँप पकड़कर उसे मारते नहीं हैं इसे पहाड़ पर ले जाकर छोड़ देते हैं। जहां आमतौर पर आदमी नहीं जाते हैं। इससे आदमी एवं साँप दोनों की रक्षा करते हैं। आदमी को साँप से काटने से बचाते ही हैं और साँप को कोई न मारे उसे बचाने हेतु पहाड़ पर छोड़ते भी हैं। वे कहते हैं इस वर्ष लगभग 800 साँप पकड़कर पहाड़ पर ले जाकर छोड़े हैं। यह कार्य सर्वोत्तम है।

मलार लोहार का कहना है कि- एकल विद्यालय के द्वारा गाँव मजबूत हो रहा है। कुछ वर्ष पूर्व इसी टोले में शराब के विरोध में गाँव की महिलाओं ने जबरदस्त आंदोलन छेड़ा था। तब से शराब के दुष्परिणाम से राहत मिली है। महिलाएं जागरूक हुई हैं। पुरुष वर्ग अपनी-अपनी जिम्मेवारी संभाल लेते हैं एवं बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि जागृत हो रही हैं।

News Source
Ekal

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