एकल के आरोग्य प्रकल्प द्वारा बताये घरेलू उपचार से मिल रही है ग्रामवासियों को सफलता

Villagers are getting success with home remedies

Through the Ekal’s health wing, Ekal Arogya, training for home remedies being taught in the villages are getting success. As a ray of new hope in the field of health awareness the Ekal health project is moving forward. A small sample of the success stories was found in Hullu village of Sangrampur Panchayat in Gola block of Ramgarh district of Jharkhand state. Hullu village is aware 65-70 km east-north direction from Ranchi.

एकल आरोग्य प्रकल्प के माध्यम से गाँव -गाँव में सिखाए जा रहे घरेलू उपचार के नुस्खे कामयाबी हासिल कर रहे है। गाँव वासियों को चिकित्सीय क्षेत्र में नयी आशा की किरण के रूप में एकल आरोग्य प्रकल्प आगे बढ़ रहा है। इसका एक छोटा सा नमूना झारखंड प्रांत के रामगढ़ जिले का गोला प्रखण्ड स्थित संग्रामपुर पंचायत के हूल्लू ग्राम में देखने को मिला। हूल्लू ग्राम रांची से 65-70 किमी पूरब-उत्तर दिशा में अवस्थित है।

निमोनिया ठीक हो गया

हूल्लू ग्राम निवासी श्रीमती सावित्री देवी 30 वर्षीय गृहिणी हैं। पेशा खेती-बारी है। सावित्री आप बीती हुई घटना के बारे में बताते हुए कहती है - मेरी छोटी बेटी अर्चना कुमारी जिसकी उम्र ढाई साल है उसे दो माह पूर्व निमोनिया हो गया था। डक्टर से दिखाने के लिए गोला प्रखण्ड ले गयी थी। वहाँ सदर अस्पताल में चिकित्सा कराई, लेकिन वह ठीक नहीं हुई। 10 दिनों तक दवा खिलाते रही लेकिन निमोनिया समाप्त होने का नाम ही नहीं लेता था। मेरी बेटी अर्चना के सांस की धड़कन में कोई कमी नहीं हुईनाक से पानी गिरना भी बंद नहीं हुआखाँसते-खाँसते तो उसका दम ही फूलने लगा था। मुझे चिंता इस बात की हो रही थी कि आखिर दस दिन हो गएएलोपैथी दवा खा रही है फिर लाभ क्यों नहीं हो रहा हैइसी बीच एक दिन एकल आरोग्य प्रकल्प हूल्लू ग्राम की बैठक बुलाई गयी। आयोग्य प्रकल्प हूल्लू ग्राम के सचिव होने के नाते मैं उस बैठक में गयी थी। संयोग ऐसा था कि हूल्लू ग्राम की आरोग्य सेविका आरोग्य चार्ट दिखाकर घरेलू उपचार के बारे में बता रही थी। इसी क्रम में मैं भी अपनी बेटी की बीमारी निमोनिया के बारे में पूछ बैठी। पूरी घटना सुनने के बाद ग्राम आरोग्य सेविका श्रीमती शकुंतला देवी ने निमोनिया के घरेलू उपचार पति को बताते हुए निम्न दवा लेने की सलाह दी। अमृता एवं गोल मिर्चीमिश्री इसफगोल की भुस्सी मिश्रित कर 15 से 20 डस् घोल बेटी अर्चना को सुबह-शाम पीने की सलाह दी। दो दिनों के चार खुराक में मेरी बेटी अर्चना निमोनिया से मुक्त हो गयी। वह बिल्कुल ठीक हो गयी। इससे मुझे एकल आरोग्य प्रकल्प के कार्यों में रुचि बढ़ने लगी। इस प्रकल्प का ग्राम सचिव होने का मुझे गर्व होने लगा। अब अधिक से अधिक यही प्रयास है कि गाँव के अधिकतर लोगों की बीमारी घरेलू चिकित्सा पति से ही ठीक हो जाए।

पैंतीस (35) वर्षीय श्रीमती निर्मला देवी रामगढ़ अंचल के गोला संच की आरोग्य संच संयोजिका का दायित्व निभा रही है। निर्मला देवी के दो बेटे हैंपहले बेटे का नाम जितेन्द्र हैजिसकी उम्र 19 वर्ष है एवं दूसरे बेटे का नाम देव कुमार हैउम्र 10 वर्ष। पहला बेटा जितेन्द्र कुमार को जब दस्त हुआ तो उसे अमृता दी। दो खुराक खाने के बाद दस्त ठीक हो गया।

किन्तु चिंताजनक स्थिति निर्मला देवी के दूसरे बेटे देव कुमार को निमोनिया होने से हुई। जब देव कुमार को निमोनिया हुआ तो उसे एलोपैथी चिकित्सा हेतु गोला में डॉक्टर के पास ले गए। निमोनिया की हालत देखकर उसे अस्पताल में ही भर्ती कर लिया गया। कुछ दिन भर्ती रहने के बाद उसे घर ले आए। लेकिन बीमारी ठीक नहीं हुई। एक अन्य डॉक्टर को दिखाई। फिर भी लाभ नहीं मिला। हैरान हो गयी थी। हिम्मत जवाब दे रहा था। किन्तु निर्मला हार नहीं मानी। एकल आरोग्य प्रकल्प के प्रशिक्षण में गयी थी। उस वर्ग में भी इस बीमारी के बारे चर्चा कीकिन्तु उसे संतोषजनक जवाब नहीं मिला। निराश निर्मला कुछ विकल्प ढूँढने लगी। आरोग्य प्रशिक्षण से लौटकर घर जैसे ही पहुँची। प्रशिक्षण वर्ग में बताए अनुसार घरेलू चिकित्सा की दवा अपनी सूझ-बूझ से बनाई। जिसमें अमृता को पीस कर उसके रस में गोलकी के तीन दाने डालकर बेटा को पिला दिया। दो समय पिलाने के बाद निमोनिया ठीक हो गया। निर्मला बताती है मेरा बेटा देव कुमार अभी दस साल का है। 6 साल का था तब निमोनिया हुआ था 4 साल बीत जाने के बाद भी अभी तक निमोनिया दुबारा नहीं हुआ है।

सफेद दाग से राहत

इसी गाँव के 47 वर्षीय जयप्रकाश महतो ट्रक चालक है। पूरे शरीर में इसे सफेद दाग हुआ था। कुछ माह तो श्री महतो ने सफेद दाग की घोर उपेक्षा की। उपेक्षा के कारण सफेद दाग बढ़ता ही गया। इनकी बीमारी को देखकर गाँव के कुछ बंधुओं ने इन्हें इलाज कराने की सलाह दी। किन्तु श्री महतो इसे कोई बीमारी मानते ही नहीं थे। किसी कारणवश महतो ग्राम आरोग्य सेविका श्रीमती शकुंतला देवी के घर गये। सफेद दाग के बारे में चर्चा हुई। ग्राम आरोग्य सेविका ने बताया कि घरेलू चिकित्सा के रूप में में जो दवा दे रही हूँउसे दो तीन दिन तक लगातार लगा कर देखो। सफेद दाग में कमी आ जाएगी। हिदायत यह दी गई कि पहले थोड़ा सा बाँह में लगाकर देखो यदि लाभ दिखाई पड़े तो पूरे शरीर में लगाना। तीन दिनों में बाँह के सफेद दाग ठीक हो गये। इसी प्रकार जय प्रकाश महतो अपने बाँह एवं शरीर के विभिन्न हिस्से को दिखाते हुए कहते हैं कि शरीर के अन्य हिस्से में भी एकल आरोग्य प्रकल्प की घरेलू चिकित्सा पति को अपनाया जिससे सफेद दाग से राहत मिली।

 

 

श्वेत प्रदर से मुक्ति

श्रीमती शकुंतला देवीउम्र-29 वर्ष वर्तमान में हुल्लू ग्राम की आरोग्य सेविका है। वर्ष 2014 से ही हुल्लू ग्राम में आरोग्य सेविका के रूप में कार्य कर रही है। संकोची स्वभाव की शकुंतला को कुंवारी  अवस्था में श्वेत प्रदर हुआ। लेकिन इस बीमारी के बारे में उसे कुछ पता नहीं था। संकोच वश वह कई वर्षों तक किसी को नहीं बताई। बताने में उसे शर्म आ रही थी। श्वेत प्रदर को वह बीमारी नहीं मानती थी। महिलाओं में ऐसा होना एक सामान्य प्रक्रिया है।

की शादी भी हो गयी। पुत्र रत्न की प्राप्ति भी हो गयी। किन्तु श्वेत प्रदर के बारे में किसी को नहीं बताई। लगभग 6-7 वर्षों बाद जब वह आरोग्य प्रकल्प से जुड़ी तो आरोग्य प्रकल्प सेविका प्रशिक्षण वर्ग में श्वेत प्रदर की बीमारी के बारे में वास्तविक जानकारी मिली। इस प्रशिक्षण के बाद उसने स्वयं श्वेत प्रदर बीमारी की इलाज की। आरोग्य प्रशिक्षण के अनुसार अमृता एवं गोल मिर्च का जूस बनाकर लगभग एक माह तक सेवन किया। आज वह बिल्कुल ठीक है।

बवासीर को बॉय - बॉय

श्रीमती जुही देवी रामगढ़ अंचल के गोला संच के हुल्लु ग्राम की रहने वाली हैवह एकल आरोग्य प्रकल्प की हुल्लू ग्राम की कोषाध्यक्ष भी है। श्रीमती जुही को दो-तीन साल पहले बवासीर हुआ था। वह इसका ऑपरेशन करवाई। बीच में तो ठीक रहीकिन्तु गत 6 माह पूर्व श्रीमती जूही की खूनी बवासीर पुनः पुनर्जीवित हो गयी। तकलीफ बढ़ने लगी। इस बार जुही न तो कोई वैद्य के पास गयी और न कोई डॉक्टर के पास और न ही ऑपरेशन हेतु कोई अस्पताल गयी। सीधे वह ग्राम आरोग्य सेविका के पास गयी एवं बवासीर के बारे में बताया। ग्राम आरोग्य सेविका श्रीमती शकुन्तला देवी ने घरेलू चिकित्सा के अंतर्गत आठ दिनों की दवा बनाकर दी। श्रीमती जुही की बात माने तो सच मायने में आठ दिनों में ही खूनी बवासीर ठीक हो गया। अब जुही ने बवासीर नामक बीमारी को बॉय - बॉय कर दिया है।

इस बीमारी के संदर्भ में जब ग्राम आरोग्य सेविका श्रीमती शकुंतला से बातचीत की तो उसने नारियल जटा को जलाकर उसकी राख एवं गोल मिर्च पाउडर को दही में मिलाकर एक सप्ताह खाने के लिए जुही को बताया। उसका ऐसा चमत्कार हुआ कि खूनी बवासीर ठीक हो गया।

घुटने के दर्द से राहत मिली

झारखंड-संभाग के राँची भाग सिल्ली संच का खेरडीह ग्राम। इस गाँव में 2003 से एकल विद्यालय चलता है। यहाँ वर्ष 2016 में एकल आरोग्य प्रकल्प की शुरूआत हुई। आरोग्य प्रकल्प के द्वारा खेरडीह ग्राम में केंचुआ बेडसोखता गड्ढापोषण वाटिकाघरेलू चिकित्सासाफ-सफाई हेतु दीवाल लेखन आदि के कार्यों के बारे में जन जागरूकता एवं जनसहभागिता की दिशा में जागरूकता कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया है। खेरडीह ग्राम में 30-40 ग्रामवासियों की घरेलू चिकित्सा की गयी है। खुजलीदागघुटना दर्दजोनरिसटाइफाइडमलेरियाडायरियाश्वेत प्रदर आदि का इलाज घरेलू चिकित्सा के माध्यम से संभव हो सकता है। खेरडीह गाँव की रहनेवाली 60 वर्षीया श्रीमती सोरुवाली देवी 6-7 वर्षों से घुटना में दर्द से परेशान थी। अर्थाभाव के कारण वह कहीं इलाज तक नहीं करा पायी। लेकिन कुछ लोगों के कहने पर गाँव के स्वास्थ्य केन्द्र पर एन.एम. द्वारा दर्द की दवा ली। दर्द में आराम मिला। दवा खत्म हुआ तो दर्द पुनः जागृत हो गया। इसी बीच एकल आरोग्य प्रकल्प सेविका श्रीमती नमिता देवी घरेलू चिकित्सा के रूप में 1 शीशी में तेल बना कर दी जिसे प्रतिदिन दो वक्त लगाती थी। उस तेल को घुटने में लगाने से घुटने के दर्द से राहत मिली। अब सामान्य रूप से काम-काज कर लेती है। घुटने के दर्द से अब उसके दैनिक काम-काज में बाधा नहीं आती है। अब स्वस्थ होकर चलना फिरना करती है।

News Source
Ekal

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