बच्चों द्वारा पिता का स्वभाव परिवर्तन
पश्चिम बंगाल के पुरूलिया जिला के मानबाजार ब्लॉक के बाबनी मांझीडीहाह पंचायत के हुलुंग ग्राम में एकल द्यालय चलता है। उस गांव में कुल 85 परिवार हैं। विद्यालय में कुल 33 छात्र पढ़ते हैं। विद्यालय में संस्कार शिक्षा के कारण हर बच्चा विद्यालय जाते समय अपने माता-पिता को प्रणाम करता है। एक छात्र देवव्रत महतो के पिता श्री गोष्ठ बिहारी महतो रोज शाम दारू पीकर आते और घर में झगड़ा करते थे। देवव्रत रोज मां को प्रणाम करता था पर पिता को नहीं।
पिता यह देखता। एक दिन पिता ने अपने बेटे से पूछा क्या बात है? प्रतिदिन तुम अपनी मां को प्रणाम करते हो और मुझे नहीं। इस बात को सुनकर छोटे से बच्चे ने अपने पिताजी से कहा कि जिस दिन से आप शराब पीना बंद करोगे, उस दिन से मैं आपको भी प्रणाम करूंगा।
इस बात को सुनकर पिता की आंखें खुल गई, और उसने उसी समय संकल्प लिया कि ‘‘आज के बाद से मैं कभी नशा नहीं करूंगा‘‘। उस दिन रात में गांव में एक बैठक बुलाई गई और इस घटना के बारे में सबको जानकारी दी गई। इस प्रकार ग्रामवासियों को एकल का गुरूत्व समझ में आया।
उक्त घटना के बाद गाँव लगातार विकास की ओर है। करीब 50 प्रतिशत लोगों ने नशा छोड़ दिया है और बाकी लोग भी धीरे-धीरे नशे की आदत से छुटकारा पाने का प्रयास कर रहे हैं। गाँव में पोषण वाटिका के प्रयोग शुरू से किये गए हैं, जिनसे उन्हें ऑर्गेनिक खाद, सब्जी आदि मिलने लगी है। गाँव के लोग सूचना का अधिकार भी समझने
लगे हैं और इस कारण उन्हें सरकारी योजनाओं से भी लाभ मिलना शुरू हो गया है। यह सारे परिवर्तन एकल विद्यालय में दी जानेवाली संस्कार शिक्षा के कारण संभव हो सके हैं।