In drought ridden areas of Rajasthan the programme to construct cost effective water storage tanks are helping fight shortage of water. More than 57,000 tanks, which will store some 17531 lakh litres of water, at a cost of 730.71 crore Rupees have been constructed. Read more....
प्रदेश के 12 मरूस्थली जिलों नागौर, चूरू, पाली, बीकानेर, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ,़ बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, सीकर, झूंझुनू तथा जालौर में पानी का अभाव एक प्राकृतिक नियति रही है। पुराने समय में वहां के निवासी अपने स्तर पर ही अपने घरों व खेतों में जल कुण्डों (टाँका) का निर्माण करवाते थे। इन टांकों में संग्रहित बरसाती जल से स्वयं के पीने तथा पशुओं आदि की आवश्यकता की पूर्ति किया करते थे। पूरे गांव के लिए नाडी, तालाब, बावड़ी आदि का निर्माण परमार्थ में सेठ-साहूकारों द्वारा करवाया जाता था। वर्तमान में जल आपूर्ति का दायित्व राज्य सरकाराें का है।
राजस्थान में हर तीसरे वर्ष अकाल पड़ना एक नियति सी बन गई है। सरकार को ग्रीष्म काल में पानी की आपूर्ति के लिए पानी के दूर दराज के स़्त्रोतों से टैंकरों एवं ट्रेन द्वारा न केवल मरू राजस्थान बल्कि राज्य के अन्य भागों में भी पानी की आपूर्ति की व्यवस्था करनी पड़ती है। इस व्यवस्था पर भारी व्यय राजकोष से करना होता है।
वर्ष 2015 में महाराष्ट्र में राज्य सरकार ने एक अध्ययन दल भेजा जिसकी रिपोर्ट के आधार पर मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान चला कर वर्षा के जल के संग्रहण एवं भूमिगत जल स्तर को बढ़ाने के लिए एक योजना बनाई गई। इस योजना का एक भाग रेगिस्तानी जिलों के लिए हैं। इसके अन्तर्गत लोगों की पुरानी जल संग्रहण तकनीक “टांका निर्माण” को अपनाया गया। इस योजना में सूचना एवं प्रौद्योगिकी पर आधारित जियो टैगिंग का प्रभावी प्रयोग कर अभियान को पारदर्शी बनाया गया।
27 जनवरी, 2016 से शुरू मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान के प्रथम चरण के अन्तर्गत खेतों में 20 हजार 324 व पक्के घरों की छत को पायतन के रूप में काम में लेकर बनाए गए 7 हजार 278 कुल 27 हजार 602 टांकों का निर्माण 357.13 करोड़ की लागत से किया गया। इसी प्रकार द्वितीय चरण का शुभारम्भ 9 दिसम्बर, 2016 से किया गया व इसके अन्तर्गत खेतों में 20 हजार 322 व पक्के घरों की छतों को पायतन के रूप में उपयोग कर 9 हजार 160 अर्थात कुल 29 हजार 482 टांको का 373.55 करोड़ रूपये की लागत से निर्माण करवाया गया। इन दोनोें चरणों में कुल 57 हजार 084 टांकों का 730.71 करोड़ की लागत से निर्माण हुआ।
इन 57 हजार 084 टांकाें में 17531.5 लाख लीटर पानी का संग्रहण हर मानसून में एक वर्ष में उपयोग के बाद हो जाता है। इन टांकों की औसतन आयु 20 वर्ष है। इन रेगिस्तानी जिलों में इन टांकों के निर्माण से पहले अकाल के वर्षाें में राज्य सरकार द्वारा औसतन प्रतिवर्ष 12 हजार टैंकरों से पानी की आपूर्ति की गई जबकि वर्ष 2017 में मात्र 3 हजार 110 टैंकरों से पानी की आपूर्ति की गई।
बरसाती जल के समतुल्य आसुत जल (Distilled Water) का मूल्य 8 रूपये प्रति लीटर है जबकि टांकों के निर्माण की लागत के अनुसार एक मानसून में संग्रहित पानी का मूल्य 4 रूपये 16 पैसे प्रति लीटर आता है। अभियान के तहत निर्मित टांकों में संग्रहित वर्षा जल का मूल्यांकन आसुत जल के मूल्य के आधार पर किया जाए तो टांकों के निर्माण की लागत से अधिक मूल्य का पानी एक ही मानसून में संग्रहित हो गया।
अभियान के तात्कालिक एवं दूरगामी लाभ मिलेंगे- अभियान के तहत टांके निर्माण में स्थानीय लोगाें को रोजगार मिल रहा हैै। अभियान में बनने वाले टांकों के आसपास लाखों की संख्या में पेड़ पौधे विकसित होंगे जो पर्यावरण संतुलन के साथ ही सम्बन्धित काश्तकार के लिए आर्थिक रूप से लाभदायक होंगे।
अभियान में बनने वाले टांकों से पशुओं के लिए पानी की सुविधा बढ़ने से ग्रामीणों का पलायन भी रूकेगा और पशुधन की संख्या में भी वृद्धि होगी। ग्रामीणों के पलायन की दर मेें गिरावट आने से सम्बन्धित परिवार के बालकाें की शिक्षण व्यवस्था भी सुचारू रह सकेगी।