घरेलू उपचार द्वारा कई बीमारियों का इलाज संभव हुआ
एकल अभियान के झारखंड राज्य के रामगढ़ संच में 125 व्यक्तियों का घरेलू उपचार किया गया एवं इसके द्वारा 35 लोग पूर्ण रूप से ठीक हो गये है। जिनमें बवासीर, सर्दी-खांसी, बदन दर्द, घाव, प्रदर इत्यादि प्रकार की बीमारियाँ शामिल हैं। गांव के लोग भी काफी खुश हैं, क्योंकि इन बीमारियों में डाक्टर के पास जाने से लगभग 5000 रूपया खर्च हो जाता है। संच की आरोग्य सेविका प्रभावती देवी खुद बता रही है कि यह सब केसे संभव हुआ...
"मेरे ऊपर रांची भाग, अंचल रामगढ़ गोला संच की आरोग्य सेविका का दायित्व है। मुझे एनीमिया नियंत्रण कार्यक्रम के सर्वे और दवा वितरण के दौरान गांव के लोगों से बातचीत में यह पता चला कि एलोपैथिक दवा से एनीमिया स्थायी रूप से ठीक नहीं किया जा सकता है। गांव के लोग हर बीमारी के लिए गांव के वैद्य पर ही निर्भर करते हैं। उनको वैद्य पर ज्यादा विश्वास है और सरकारी डाॅ. पर कम। सरकारी दवा अंगे्रजी होती है एवं ज्यादा पैसा देकर खरीदनी पड़ती है। वैद्य तो गांव की ही जड़ी-बुटी बताते हैं जिसमें पैसा नहीं लगता। हमलोग एनिमिया कंट्रोल के लिए आयरन की गोली एवं कीड़ा माने की दवा रोगी को देते हैं पर यह हमेशा तो नहीं दिया जा सकता। अतः रांची में योजना के लोगों ने प्रयोग के रूप में घरेलू दवा बनाने का प्रशिक्षण प्रारम्भ किया। रामगढ़ अंचल में गोला संच और लोहरदगा अंचल में भण्डरा संच प्रगत संच है। इसलिए हमलोगों ने एनीमिया नियंत्रण के साथ-साथ उपचार का कार्य भी 2014 से प्रारंभ किया। दोनों संच के 60 विद्यालय गांवों मे 7-7 व्यक्तियों की ग्राम समिति बनाई गई, तथा यह निर्धारित किया गया कि इसकी अध्यक्ष महिला ही रहेगी। क्योंकि महिला ही घर की साफ-सफाई का अधिक ध्यान रखती है। इसलिए समिति के अध्यक्ष का नाम ग्राम आरोग्य संयोजिका है। इसका दो दिवसीय प्रशिक्षण रांची के अनुभवी डाक्टरों के द्वारा किया गया। उनके द्वारा औषधीय पेड़-पौधों की पहचान करायी गयी। इसका निर्माण तथा उसका व्यवहार का तरीका बताया गया। इस प्रशिक्षण के बाद गोला संच के 30 गांवों में आरोग्य संयोजिका बनाई गई। आरोग्य संयोजिका द्वारा गांव के रोगियों का रजिस्टर में नामांकन किया जाता है और उन्हें क्या बीमारी है, कितनी बार दवा दी गई है वह ठीक हुआ कि नहीं पूरा रिपोर्ट तैयार किया जाता है। हमारे संच में 125 व्यक्तियों को घरेलू उपचार किया गया एवं इसके द्वारा 35 पूर्ण रूप से ठीक किया गया है। जिनमें बवासीर, सर्दी-खांसी, बदन दर्द, घाव, प्रदर इत्यादि प्रकार की बीमारियाँ शामिल हैं। गांव के लोग भी काफी खुश हैं, क्योंकि इन बीमारियों में डाक्टर के पास जाने से लगभग 5000 रूपया खर्च हो जाता है। आज आरोग्य संयोजिका होने की वजह से गांव में मेरा मान-सम्मान काफी बढ़ गया है। आज जब भी मैं गांव में घूमती हूँ, वहां के लोग मुझे घरेलू डाक्टर कह कर पुकारते हैं। यदि इस कार्य का अधिक प्रचार-प्रसार किया जाय, तो गांव के लोगों को छोटी-छोटी बीमारियों के लिए डाक्टरों के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी और उनके पैसे की भी बचत होगी। इस प्रकार गांव स्वस्थ समाज बन जाएगा।"
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