Kalpana's Success Story : From Ekal To Engineering

(English version given below)

यह कहानी है एक बच्ची सी दिखने वाली सुन्दर २२ वर्षिय कल्पना की। झारखंड प्रान्त के रांची जिले के अन्तर्गत आता है एक जिला सिल्ली। करयाडीह इस जिले का एक गांव है, और यहीं कि रहने वाली है कल्पना। कल्पना के पिता निवारण महते दिव्यांग है और उसकी मां सब्जी बेचती है।

गांव के एकल विद्यालय में पढ़ाई शुरु कर कल्पना आज रांची में हॉस्टल में रह कर बी. टेक. (इन्जीनियरींग) कर रही हैं। हिन्दी, अंग्रेजी के अलावा वह स्थानिय भाषा में भी निपुण है। कई विपत्तियों का सामना करते हुये कल्पना आसमान की ऊचाइयों को छूना चाहती हे। परिवार को सम्भालना, छोटी बहन को पढ़ाना, अपनी बी. टेक. की पढ़ाई पूरी करना, उसके जिवन की वास्तलिकता है। दूसरों के प्रति विश्वास और अपने प्रति आत्मविश्वास ही है तभी तो वह इतने गर्व से कहती है कि एक दिन मैं केन्द्रिय अभियन्ता जरूर नियुक्त होऊंगी।

वर्ष २००३ में कल्पना सात वर्ष की थी। उस समय जब उसके माता-पिता मजदूरी करने चले जाते थे, वह घर का कार्य एवं अपनी बहनों को सम्भालती थी। वह गांव में दूसरे बच्चों को एकल विद्यालय जाते देखती और उसके मन में भी आता कि वो भी वहा पढ़ने जाये। अपने दृढ़ इच्छा शक्ति की धनी कल्पना घर का काम पूर्ण कर अपनी छोटी बहन को लेकर एकल विद्यालय जाने लगी। उस समय को याद करते हुये कल्पना कहती हैं कि एकल के तत्कालीन आचार्य श्री कर्ण महतो जी हम सभी ब्चचो को आनंदायी खेल एवं पढ़ाई के साथ-साथ विनम्रता और अनुशासन आदि के बारे में भी सिखाते थे।

वर्ष २००८ में मध्य विद्यालय कारेयाडीह में आठवी कक्षा उतीर्णकी और बालिका उच्च विद्यालय पतराहातू से आगे की पढ़ाई शुरू की। उच्च शिक्षा की पढ़ाई में होने वाले खर्च की व्यवस्था कल्पना ने सड़क निर्माण कार्य में मजदूरी करके की। शिक्षा के साथ-साथ मजदूरी करने के कारण कक्षा में कल्पना का अनुपस्थित होना स्वाभाविक था। एक दिन विद्यालय के प्रधानाअध्यापिका ने कल्पना को कक्षा में अनुपस्थित रहने का कारण डांट लगाते हुये चेतावनी दी की उसे अर्थदण्ड दिया जायेगा। जब कल्पना ने अपनी मजदूरी करके पैसो की जुगाड़ की बात बतायी तो प्रधानाअध्यापिका महोदया ने विद्यालय के सचिव श्री मजोहरी महतो से मिल कर कल्पना का विद्यालय शुल्क माफ करवा कर आगे की पढ़ाई से उसे चिन्ता मुक्त कर दिया।

इसी के बाद एक अनहोनी हो गई। माता-पिता द्वारा अर्जित की गई धान, खलिहान में आग लग गई। सब कुछ स्वाहा हो गया। भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई। फिर भी परिश्रमी कल्पना ने परिस्थिति का सामना करकेअपनी मैट्रिक की परीक्षा दी जिसका परिणाम चौकाने वाला रहा। सिल्ली विधान-सभा क्षेत्र में तीसरे टॉपर के रूप में, और अपने विद्यालय में वर्ष २०१० में प्रथम टॉपर के रूप में कल्पना सफलता अर्जित की।

रांची से प्रकाशित दैनिक प्रभात खबर समाचार पत्र में यह खबर छपी और कल्पना को प्रतिभा सम्मान से सम्मानित किया गया। अमूल कम्पनी की तरफ से उसे स्मृति चिन्ह प्रदान  किया गया, स्थानीय विधायक जी की तरफ से १००० रू. का चेक प्रदान किया गया। सम्मान समारोह में जब कल्पना से पूछा गया कि वो आगे क्या करना चाहेगी, तब उसने कहा कि, मेरा सपना है कि मैं इन्जीनीयरिंग की पढ़ाई करू। इस पर प्रभात खबर की लताजी ने उसे प्रोत्साहित करते हुये झारखंड संयुक्त प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने को कहा।

२२ मई २०१० के इसी अखबार में मैट्रिक के टॉपर बच्चो की सूची छपी और उसमें कल्पना का भी नाम था और लिखा गया था कि यह लड़की इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहती है। घर का काम करते हुये उसने पढ़ाई जारी रखी और २०११ में झारखंड संयुक्त प्रवेश परीक्षा में अच्छे अंको से उतीर्ण हुयी। जमशेदपुर स्थित अल-कबीर पोलेटेक्निक से Electronics And Communication Engineering में तीन वर्षिय डिप्लोमा किया। पढ़ाई के साथ कल्पना पार्ट टाईम जॉब भी करती थी। डिप्लोमा मिलने के बाद एक वर्ष तक उसने एक मल्टी नेशनल इलेक्ट्रोनिक कम्पनी में काम किया। यहां से अर्जित राशि से वर्ष२०१६ में कल्पना अपना बी. टेक में नामांकन करवाया और Electronics And Tele-Communication Engineering की पढ़ाई शुरु कर दी।

अपने माता-पिता से प्रेरित कल्पना को देख कर एक बार गरीबी भी सिहर उठी। मां सब्जी बेचती, पिता गाय भैस चराते और मजदूरी करते, कभी कभी तो रात में ढिबरी का तेल भी समाप्त हो जाता। बी.पी.एल. राशन कार्ड में तेल सस्ता मिलता था, लेकिन उतना पैसा जुटाना भी मुश्किल था। इन विकट परिस्थितियां का डट कर सामना करती हुई कल्पना ने कभी पढ़ाई से मन नही मोड़ा और आज बी.टेक. की डिग्री प्राप्त करने के और अग्रसर है। पढ़ाई में मन लगाने की प्रेरणा कल्पना को एकल विद्यालय के माध्यम से ही मिली। एकल से बी.टेक. की कहानी इससे अच्छी और क्या हो सकती है।

 

Ekal to Engineering – An Inspiring Journey

This is the story of Kalpana, who today is doing her engineering course from a Ranchi college and would get her B.Tech. degree in 2018.

Native of a remote village Kariyadih in the Silli block of Ranchi district in Jharkhand, she was born in 1994. Her father is a disabled person, earning a little doing petty jobs and mother a vegetable seller.

Kalpna was seven years old in 2001. She often observed other children going to Ekal Vidyalaya, and always thought of going there to study. Eventually, strong determination pushed her going to Ekal Vidyalaya with her younger sister after finishing her domestic responsibilities. Remembering that phase Kalpna says that the teacher during that period, Sri Karan Mahto will make us students play interesting games and will impart education, laying stress on discipline and human values.

In 2003, Kalpana joined the local government middle school and passed the 8th standard in 2008. After this she joined the Patrahatu higher secondary school for further studies. Kalpna managed her higher education while working as a road construction labour.

When the results of the final ‘matric’ examination was declared her efforts, facing all odds, paid rich dividends. She topped in her school and was ranked third in the whole Silli block. She wanted to become a government engineer. She was advised to prepare for Jharkhand Combined Entrance Competitive Examination. And here she passed with good honours and joined the 3-year diploma course in Electronics and Communication Engineering from Al-Kabir Polytechnic, Jamshedpur. To make ends meet, during this period she took up a part time job.

Getting her diploma degree she joined a multi-national company. However, her dream of becoming a government engineer was still haunting her. She invested her earnings from the job to get admission in a Ranchi engineering college to pursue B.Tech. in Electronics and Telecommunication Engineering.

Today, she is pursuing B. Tech. while staying in a hostel in Ranchi. Besides Hindi and English she has an excellent command over local language.

Talking of her hardships, she says, “all this hardship do not deter me from my mission and the motivation to study and overcome difficulties was imbibed in me from my early days at Ekal Vidyalaya.”

Her journey from Ekal Vidyalaya to a government engineer would surely be fulfilled with God’s grace.

News Source
Ekal Varta

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