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The Khadi and Village Industries Commission (KVIC) has rolled out a unique project to produce Neera and Palmgur which has huge potential to create employment in the country. The project that aims at promoting Neera as a substitute to soft drinks while also creating self-employment to Adivasis and traditional trappers was launched on Tuesday at Dahanu in Palghar district of Maharashtra, a state with more than 50 lakh palm trees.
KVIC distributed tool kits for extraction of Neera and making palmgur to 200 local artisans who were given 7 days training by KVIC. A tool kit worth Rs 15,000 comprises food grade stainless steel Kadhai, perforated moulds, canteen burners and other equipment like knives, rope and axes for extraction of Neera. The initiative will provide direct employment to 400 local traditional trappers.
Neera, extracted from the palm trees before sunrise, is a nutrient-rich health drink consumed in many Indian states. However, due to lack of institutionalized market technique, the commercial production and large scale marketing of Neera has not commenced yet. The project has been rolled out on the initiative of Union Minister of MSME, Shri Nitin Gadkari who is also exploring the feasibility of engaging some big players of the state to start using Neera as soft drinks to make it commercially useful.
There are approximately 10 crore palm trees across the country. Further, a wide range of products like candies, milk chocolates, palm cola, ice-cream and traditional sweets can be produced from Neera if properly marketed. At present palmgur Neera worth Rs 500 crore is traded in the country. The turnover is likely to increase manifold with commercial production of Neera.
The KVIC has prepared a detailed project report on production of Neera and Palmgur (jaggery). It is proposed to start standardized collection, processing and packing of Neera under controlled conditions so as to prevent it from fermentation. The processed Neera, through cold chain, is intended to reach the B2C supply chain.
“On the lines of coconut water, we are working to promote Neera as a substitute to the soft drinks available in the market. Neera is organic and rich in nutrients and thus a complete health drink. With increasing the production and marketing of Neera, we are trying to establish it as a key vertical of India’s village industry,” KVIC Chairman Shri Vinai Saxena said, while distributing tool kits to the artisans via video-conference.
Shri Saxena said the production of Neera has high potential in terms of sale as well as creation of self-employment. “Palm industry can be a major employment generator in India. It is aligned with Hon’ble Prime Minister Shri Narendra Modi’s call of self-reliance and vocal for local,” Saxena said.
At the same time, Neera has high export potential as it is also consumed in countries like Sri Lanka, Africa, Malaysia, Indonesia, Thailand, and Myanmar. India has an abundance of palm fields in states like Maharashtra, Gujarat, Goa, Daman & Diu, Dadra and Nagar Haveli, Tamil Nadu, Uttar Pradesh and Bihar that can make India a leading producer of Neera globally.
केवीआईसी के भारतीय ताड़ उद्योग में प्रवेश से नए रोजगारों, जैविक उत्पादों के सामने आने की संभावना
खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने नीरा एवं ताड़गुड़ का उत्पादन करने के लिए एक अनूठी परियोजना आरंभ की है जिसमें देश में रोजगार सृजन की भारी संभावना है। इस परियोजना का उद्वेश्य साफ्ट ड्रिंक के विकल्प के रूप में नीरा को बढ़ावा देना तथा जनजातियों तथा पारंपरिक पाशिकों (ट्रैपर) के लिए स्व-रोजगार का सृजन करना भी है। यह परियोजना मंगलवार को महाराष्ट्र, जहां 50 लाख से अधिक ता़ड़ के पेड़ हैं, के पालघर जिले के दहानु में लांच की गई।
केवीआईसी ने नीरा निकालने एवं ताड़गुड़ बनाने के लिए 200 स्थानीय कारीगरों को टूल किट बांटे जिन्हें केवीआईसी द्वारा 7 दिनों का प्रशिक्षण दिया गया। 15,000 रुपये के मूल्य के बराबर के इस टूल किट में फूड ग्रेड स्टेनलेस स्टील कढ़ाई, परफोरेटेड मोल्ड्स, कैंटीन बर्नर्स एवं चाकू, रस्सी तथा नीरा निकालने के लिए कुल्हाड़ी जैसे अन्य उपकरण शामिल हैं। यह पहल 400 स्थानीय पारंपरिक पाशिकों को प्रत्यक्ष रोजगार उपलब्ध कराएगी।
नीरा सूर्योदय से पहले ताड़ पेड़ से निकाली जाती है और भारत के कई राज्यों में एक पोषक स्वास्थ्य पेय के रूप में पी जाती है। तथापि, संस्थाकृत बाजार तकनीक के अभाव के कारण, अभी तक नीरा का व्यावसायिक उत्पादन तथा बड़े पैमाने पर विपणन आरंभ नहीं हुआ है। यह परियोजना केंद्रीय एमएसएमई मंत्री श्री नितिन गडकरी की पहल पर शुरू की गई है जो नीरा को व्यावसायिक रूप से उपयोगी बनाने के लिए साफ्ट ड्रिंक के रूप में नीरा का उपयोग करने के लिए राज्य की कुछ बड़ी कंपनियों को शामिल करने की संभाव्यता की भी खोज कर रहे हैं।
देश भर में लगभग 10 करोड़ ताड़ पेड़ हैं। इसके अतिरिक्त, अगर समुचित तरीके से मार्केटिंग की जाए तो कैंडी, मिल्क चाकलेट, पाम कोला, आईसक्रीम जैसे उत्पादों की व्यापक श्रृंखला तथा पारंपरिक मिठाइयां भी नीरा से तैयार की जा सकती हैं। वर्तमान में, देश में 500 करोड़ रुपये के बराबर के ताड़ गुड़ नीरा का व्यापार किया जाता है। नीरा के व्यावसायिक उत्पादन के साथ इस टर्नओवर में कई गुना बढोतरी होने की संभावना है।
केवीआईसी ने नीरा तथा ताड़ गुड़ के उत्पादन पर एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की है। प्रस्ताव किया गया है कि नियंत्रित स्थितियों के तहत नीरा का मानकीकृत संग्रह, प्रसंस्करण तथा पैकिंग आरंभ की जाए जिससे कि इसे किण्वन से बचाया जा सके। इसका उद्देश्य कोल्ड चेन के जरिये प्रसंस्कृत नीरा का बी2सी सप्लाई चेन तक पहुंचना है।
केवीआईसी के अध्यक्ष श्री विनय सक्सेना ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये कारीगरों को टूल किट वितरित करते हुए कहा ‘ नारियल पानी की तर्ज पर, हम नीरा को बाजार में उपलब्ध सॉफ्ट ड्रिंक के विकल्प के रूप में बढ़ावा देने पर कार्य कर रहे हैं। नीरा जैविक है तथा पोषकों में समृद्ध है और इस प्रकार एक संपूर्ण स्वास्थ्य पेय है। नीरा के उत्पादन एवं विपणन में बढोतरी के साथ, हम इसे भारत के ग्रामीण उद्योग के एक प्रमुख कार्यक्षेत्र के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। ‘
श्री सक्सेना ने कहा कि नीरा के उत्पादन में बिक्री तथा स्व रोजगार के सृजन के रूप में भारी संभावना है। सक्सेना ने कहा, ‘ ताड़ उद्योग भारत में रोजगार का एक प्रमुख सृजक हो सकता है। यह माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के आत्म निर्भर एवं वोकल फार लोकल की अपील के साथ भी जुड़ा हुआ है।
इसके साथ साथ, नीरा में निर्यात की भी असीम संभावनाएं हैं क्योंकि श्रीलंका, अफ्रीका, मलेशिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड एवं म्यांमार जैसे देशों में भी इसका उपभोग किया जाता है। भारत में महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, दमन एवं दीव, दादर एवं नागर हवेली, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में ताड़ प्रक्षेत्रों की बहुतायत है जो भारत को वैश्विक रूप से अग्रणी उत्पादक बना सकते हैं।