जुनून से जंग को जीतने की तैयारी

This is the story of one Rakesh Bhagat of village Kalapathar in the Potka block of East Singhbhum district in Jharkhand. Rakesh did his diploma in Mechanical and today after struggling all the time, is well established. And the credit of this change in his life, according to Rakesh himself, was the initial three years he spent in Ekal Vidyalaya in his village.

Rakesh talks high of the cultural and values education that he received in his foundation years at Ekal. He says that he loved the way the teaching was done here through games and music. His father works in a furniture shop and his mother is a home maker. 

झारखंड प्रदेश की इस्पात नगरी जमशेदपुर से तीस कि.मी. दूर अवस्थित है- पूर्वी सिंहभूम जिला के पोटका प्रखण्ड का कालापाथर गाँव । इस गाँव का रहनेवाला 21 वर्षीय युवक राकेश भगत विगत 3 वर्षों तक एकल विद्यालय में पढ़ाई करने के बाद सरकारी विद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा पास कर ISC उत्तीर्ण किया। इसके बाद प्राइवेट से ही मैकेनिकल में डिप्लोमा की पढ़ाई पूरी की। इस प्रकार इसके जीवन में परिवर्तन का संवाहक बना एकल विद्यालय।

अंतिम से अंतिम पंक्ति के पावदान पर खड़े राकेश के पिता करम चाँद भगत छोटे-मोटे किसान के साथ-साथ स्थानीय फर्नीचर की दुकान में काम करते हैं। माँ गृहिणी है जो घर संभालती है। दादा-दादी का संरक्षण पूरे परिवार को मिलता है। किन्तु घर का वातावरण ऐसा नहीं- कि बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में जुट जाए। न साधन, न कोई सुविधा। इसके बीच निकला एक समाधान, और इस दिशा में कारगर हुआ एकल अभियान।

कालापाथर गाँव के एकल विद्यालय में खेल, गीत, अभिनय आदि के आकर्षण से राकेश एकल विद्यालय में जाने लगा। खेल-खेल में पढ़ाई की और एकल विद्यालय में रम गया। बालक राकेश एकल विद्यालय में पढ़ाई की तकनीकी के साथ-साथ एकल के संस्कार एवं अनुशसन से सर्वाधिक प्रभावित हुआ। जिसके कारण एकल विद्यालय को खेल का साधन न मानकर ‘‘जीवन में कुछ करना है तो- मन को मारे मत बैठो’’ की भाँति संस्कार एवं अनुशासन को मूल मंत्र मानकर तीन साल तक की प्रारंभिक पढ़ाई; वर्ष 2007, 2008 एवं 2009 एकल विद्यालय में की। संप्रति 21 वर्षीय राकेश अपने बालपन अवस्था; 7-8 वर्ष की अल्पायुद्ध की याद को ताजा करते हुए कहता है कि- ‘‘जब मैं एकल विद्यालय में पढ़ता था उस समय हमारे गाँव के एकल विद्यालय के आचार्य मेरे ही चचेरे भाई शंकर भगत थे।

मुझे एकल विद्यालय की शिक्षण पद्धति बहुत ही अच्छी लगती थी। संगीत के माध्यम से, लोक परम्परा के माध्यम से, गीत-संगीत के माध्यम से स्थानीय रीति-रिवाज के माध्यम से खेल-खेल में आनंददायी एवं बेहद रुचिकर शिक्षा दी जाती थी। एकल विद्यालय द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रम के माध्यम से संस्कार एवं नैतिकता का जो पाठ पढ़ाया गया, वह आज सफल जीवन में परिणत हो गया है। वही हमारे जीवन में परिवर्तन की कहानी बन गयी।’’

तीन वर्षों तक एकल विद्यालय में पढ़ाई करने के बाद 7 साल तक प्राथमिक विद्यालय कालापाथर में ही पढ़ाई पूरी की एवं वर्ष 2012 में मैट्रिक की परीक्षा उतीर्ण की। वर्ष 2014 में आई.एस.सी. की परीक्षा पास की। वर्ष 2014 से 2017 तक जमशेदपुर स्थित सोनारी में आधुनिक  इंस्टीच्यूट ऑफ़  इंफोर्मेसन टेकनोलाॅजी संस्थान से मैकेनिकल में डिप्लोमा किया। डिप्लोमा की पढ़ाई जमीन बेचकर की। जैसा कि राकेश बताता है- लगभग सवा लाख की रकम से अधिक का व्यय डिप्लोमा की पढ़ाई करने में हुआ। इसके बाद दो साल तक स्थानीय एस.एस. मोटर्स गम्हरिया; पूर्वी सिंहभूम जिलाद्ध में नौकरी की, लेकिन इस काम में मन नहीं लगने के कारण वापस घर लौट आया।

आगे की पढ़ाई एवं नौकरी की तलाश में विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगा। रेलवे एवं बैंक की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे राकेश में आगे बढ़ने की तमन्ना है। विद्यार्थी के रूप में घाटशिला महाविद्यालय घाटशिला से स्नातक इतिहास की पढ़ाई ;सत्र 2017-2020द्ध कर रहा है। 21 वर्ष का युवक जुनून के जंग को जीतना चाहता है। जमीन बेच कर डिप्लोमा की पढ़ाई का मन में कचोट है। उसकी भरपाई रेलवे की नौकरी से करने की तमन्ना रखे हुए हैं। जो कुछ नहीं करने की स्थिति में था वह- सब कुछ करने की स्थिति में आगे बढ़ रहा है।

राकेश के जीवन में परिवर्तन एकल विद्यालय की पढ़ाई से ही संभव हो रहा है। विश्वास दिलाते हुए वह कहता है कि -मेरे गाँव में यदि एकल विद्यालय नहीं होता तो मैं पढ़ नहीं कर पाता। एकल विद्यालय की पढ़ाई के कारण ही मैं पढ़ पाया। एकल की पढ़ाई ही मेरी पढ़ाई की नींव है। एकल विद्यालय में पढ़ाई का टेकनिक बहुत खास है। बहुत ही सुन्दर एवं सरल भाषा में पढ़ाई होती है।

News Source
Ekal

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