Three Layered Farming changed Future of Hesatu

Bharat Mahan

तीन तलीय खेती से बदली हेसातू की तक़दीर, किसानों ने एक करोड़ २० लाख के लाह, इमारती लकड़ियों, सब्जी एवं धान की एक साथ खेती, नमी बनाये रखने के लिए पांच फीट गुना पांच फीट के गड्ढे बनाये गए

हेसातू गाँव के ग्राम प्रधान जगनू उराँव कहते हैं, खेत का एरिया तो नहीं बढ़ा सकते लेकिन खेतों में पैदावार बढ़ा सकते हैं. और यही हम ग्रामीणों के साथ मिलकर चार सालों से कर रहें हैं. यहाँ खेती की जमीन के कानूनी मालिक तो किसान हैं लेकिन खेती सामूहिक होती है. यहाँ से वहां तक खेत देखिये कहीं मेड नहीं आएगा. खेत गाँव का है और इसकी उपज पर हक भी ग्रामीणों का.

रांची से सटे ओरमांझी के हेसातू में गाँव के ११४ परिवार ४४४ एकड़ पर एक साथ खेती कर रहे हैं. ग्रामीणों ने इस सामूहिक पहल को प्रोजेक्ट खुशी नाम दिया है. यहाँ ग्रामीण तीन तलीय खेती कर रहें हैं. गाँव में इस खेती के तौर तरीके के जानकार देवेंदर नाथ ठाकुर कहते हैं, तीन तलीय मतलब एक समय में जमीन के तीनो स्तरों पर खेती. जमीन के अंदर ओल, आलू, अदरख और साडू की खेती हो रही है. जमीन पर आपको इमारती लकड़ियों के पेड़ मिलेंगे. २२ एकड़ में फैले इस जंगल में गम्हार, अकाशिया, बांस, स्नेहलता, अमरुद आदि के पेड़ लगे हैं. ग्रामीण इसे भविष्य का निवेश मानते हैं. इस जंगले से ग्रामीणों को जलावन की लकड़ी बीनने तथा पत्ते चुनने की आज़ादी है. तीसरे तल में लतेर्दार पौधे की खेती हो रही है. मौसमी सब्जियां उगाई जा रही है. गेंहू- चावल लगाये जाते हैं.

गाँव की अर्थव्यवस्था खेती आधारित है. खेती के सारे काम ग्रामीण स्वंय करते है. चाहे खेत जोतना हो, पटवन करना हो, निकौनी या फसल काटनी हो. स्नेहलता के पेड़ पर लाह के बीज लगाये जाते हैं और यही लाह गाँव की खुशहाली का ताबीज है. देवेंदर ठाकुर कहते हैं, पिछले साल एक करोड़ २० लाख रूपए के लाह बेचे गए थे और इसी पैसे से सालोंभर तीन तलीय खेती के इनपुट कॉस्ट निकाले जाते हैं. ग्रामीणों को बीज, उर्वरक, कीटनाशक,ढुलाई के लिए अलग से सोचना नहीं होता है. लाह की खेती से ४४४ एकड की खेती की व्यवस्था चलती है.

गाँव के बुधवा उराँव कहते हैं, हमें पता है कि झारखण्ड के बांकी गाँव की तरह हमारे यहाँ भी सिंचाई की व्यवस्था नहीं है लेकिन हम सरकार पर निर्भर भी नहीं हैं. बरसात का पानी हम बहने नहीं देते हैं. जहाँ पानी गिरता है वहीं धरती में पानी घुसा देते हैं. खेत में जगह –जगह पांच गुना पांच फीट एवं ६ इंच गहरे गह्ह्दे खुदे है. वे बताते हैं एक इंच से ज्यादा बारिश होती नहीं है और हमारे हर गड्ढे में लगभग ५५० लीटर पानी घुस जाता है. इससे सालों भर जमीन में नमी बनी रहती है.

सामूहिक खेती के सभी मामलों के प्रबंधन के लिए गाँव में एक कमिटी बनी है. देवेंदर ठाकुर बताते हैं सामूहिक खेती की उपज का ३०% हिस्सा जमीन मालिकों के बीच बंटता है, ३० % उपज से प्राप्त राजस्व से अगली फसल लगायी जाती है. ३०% उपज से नर्सरी उगाई जाती है तथा फ्री पौधे बांटे जाते हैं. १०% फसल से ग्रामीणों के साल भर की सांस्कृतिक गतिविधियाँ चलती है. ग्रामीणों ने गाँव के लड़के- लड़कियों के लिए एक सारंगी वादक को रखा है. बुधवा उराँव नामक इस कलाकार ने गाँव के सभी लोगों को सारंगी बजाना सीखा दिया है.

सामूहिक खेती से इस गाँव की तस्वीर और तक़दीर तो बदल रही है लेकिन सरकारी सहायता लेने के मामले में ग्रामीण कहते हैं सरकार बांकी गांवों को देखें, हम लोग सक्षम हैं.

News Source
Sudhir Pal, Sr. Journalist

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