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पोषण वाटिका के कारण पूरा गांव ही उद्योग में बदल गया

मेरा नाम भूषण प्रसाद वर्मा है। गिरिडीह अंचल में जब 2002 में काम शुरू हुआ, तभी मैं अपने ग्राम परमाडीह का ग्राम प्रमुख बना। वर्तमान में मैं गाण्डेय संच का संच समिति सदस्य हूँ। एकल का कार्य मुझे बहुत ही अच्छा लगता है। बच्चों की संस्कारयुक्त शिक्षा, महिलाओं के लिए आरोग्य योजना एवं किसानों के लिए जैविक खेती एवं पोषण वाटिका का काम तो गांवों के सम्पूर्ण विकास की अनोखी योजना है। मैनें 2006 में ही जैविक खाद का बेड लगाया था। उससे सब्जी की खेती करना प्रारम्भ किया। उत्पादन अच्छा हुआ। पहले मेरे गांव में 4-6 लोग सब्जी की खेती करते थे। पर जब हमलोगों को फायदा होने लगा, तो अन्य लोगों ने भी धीरे-धीरे सब्जी खेती करना प्रारम्भ कर दिया। हालांकि हमलोगों की जमीन बिल्कुल कंकरीली-पथरीली है एवं पानी का भी अभाव है पर गोबर की ताकत पर हमलोग खेती कर पाते हैं। आज हमारे गांव में सब्जी खेती एक उद्योग जैसा हो गया है। 70-75 किसानों के द्वारा लगभग 100-150 एकड़ पर सब्जी खेती हो रही है। गांव से 1000 फीट दूर पर एक नदी है, उसमें लगभग 30-40 डीजल इंजन हमलोग एक लाइन से लगाकर 1000 फीट लम्बी पाइप से पानी हर खेत तक पहुंचाते हैं। प्रतिदिन 40-50 मोटरसाईकिल पर लगभग 100 बोरा सब्जी नौजवान गांव के लडके लेकर निकलते हैं। मेरे गांव से अब सब्जी गिरिडीह, धनबाद, झरिया, जामताड़ा, मधुपुर अन्य शहरों में जाने लगी है। हर प्रकार की साग-सब्जियां एवं सलाद के आईटम हमलोग सीजन के हिसाब से उगा लेते हैं। गर्मी में भी सारा खेत हरा-भरा रहता है। 15-20 गांव के लोगों ने जानवर की चरवाही का अपना नियम बनाया है। गर्मी के दिनों में भी जानवर खुले नहीं चरते। सब के जानवर को कोई एक दो लडके जंगल लेकर चराने जाते हैं, जिसका खर्च हमलोग मिलकर देते हैं। किसी की भी पोषण वाटिका में घेरान की जरूरत नहीं पडती। हमलोगों का अपने गांव के गोबर से काम पूरा नहीं होता, तो जो गाडी में सब्जी एवं सब्जी का बिचडा लेकर धनबाद बेचने जाते हैं, उसी में वहां से खरीदकर गोबर लाते हैं। सम्पूर्ण खेती जैविक ही करते हैं। जैविक खेती से मिट्टी उपजाऊं रहती है। पानी कम लगता है। फसल अधिक दिन हरी भरी रहती है एवं फलों में चमक रहती है। उत्पादन भी अधिक होता है एवं कीमत भी अधिक मिलती है। अब तो हमारे गांव में जैविक खाद बनाने का प्रशिक्षण भी हुआ है। गोबर के साथ गोमूत्र के प्रयोग से जीवामृत बनाना एवं कीटनियंत्रक बनाने का काम तो और भी आसान है। इस परिणाम कुम्भ में हमारे गांव से भी साग-सब्जी आई है। आशा करता हूँ शुद्ध सब्जी खाकर सभी स्वस्थ होंगे।

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Ekal Parinam Prasang

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