Ekal has always been promoting from long the use of vermi compost in the fields and do away with chemical fertilisers, for better health of all.
This is the story of one Savitri Devi of Kherdih village in the Silli block of Jharhand state. She owns about an acre of land. Earlier she was using chemical fertilisers but for the last 8 years she has been using earthworm manure and she is very happy of the produce. in her field, she produces vegetables like potato, tomato, brinjal or egg plant, and also other crops like paddy and pulses.
Savitri says that using chemical fertilisers earlier made the earth hard and became difficult to plant paddy etc. Now with vermi compost the land is soft. She says that the vegetables now have a better taste and the quantity of produce has also increased. Now she does not have to buy earthworms as they generate themselves. In fact, she is now planning to sell earthworms to neighbours too.
सिल्ली संच के खेरडीह गाँव के एकल विद्यालय की आचार्य सावित्री देवी 8 साल से केचुआ युक्त जैविक खेती कर रही हैं। उसके पास लगभग एक एकड़ जमीन है। वह खेत में आलू, टमाटर, बैंगन, प्याज, धान, अरहर, उड़द, मकई, मिर्चा, सरसो की खेती करती है।
8 साल पहले वह अपने खेत में यूरिया, डीएपी पारस रसायनिक खाद भरपूर प्रयोग करती थी। किन्तु अब वह 8 साल से केवल जैविक खाद से ही खेती करती है। दोनों प्रकार की खेती अर्थात् रासायनिक खेती एवं जैविक खेती करने का उसे गहरा अनुभव हासिल हो गया है। अपना अनुभव बताते हुए सावित्री कहती हैं- खेत में रासायनिक खाद डालने से खेत की मिट्टी कड़ी हो जाती है। खेत में उपज कम होने लगती हैं, जो भी पैदावार होता है उसमें स्वाद कम होता है। खानपान में स्वादिष्ट कम लगता है। धान रोपने पर हाथ में दर्द होने लगता हैं, रासायनिक खाद के प्रयोग से जमीन रूखा रहता है। जबकि जैविक खेती करने से खेत की मिट्टी मुलायम और भुरभुरा रहती है। सब्जी के पैदावार बढ़ जाते हैं। सब्जी की गुणवत्ता में वृद्धि हो जाती है। मिट्टी हल्की एवं उर्वरायुक्त रहती है। फसल में हरियाली रहती है। धान रोपने में हाथ में दर्द नहीं होता है।
इतना ही नहीं केंचुआ खाद से की गई खेती से धान की खेत में स्वतः केचुआ निकलना शुरू हो जाता है। अब केचुआ बाहर से मांगना नहीं पड़ता है। जैविक खेती करने से केचुआ खेत में स्वतः उत्पन्न होने लगे हैं, जिससे जैविक खाद बनाने में सहुलियत होती है।
एकल आचार्या सावित्री बताती है कि बरसात के दिनों में केंचुआ खेत में ही उत्पन्न होने लगे हैं। अब केंचुआ को निकालकर उसे बिक्री करने की योजना बना रही है। वह कहती है- जहाँ-जहाँ मेरी जमीन है वहाँ-वहाँ केंचुआ है। खेरडीह गाँव की रहने वाली सरस्वती देवी कहती हैं कि मेरे घर में जैविक खाद का निर्माण होता हैं। 4-5 साल से केचुआ बेड लगाया है। 3 माह में जैविक खाद तैयार हो जाता है। किसान अपने खेत में रासायनिक खाद की जगह जैविक खाद का प्रयोग करते हैं। सब्जी की खेती में जैसे - आलू, टमाटर, बैंगन, प्याज, मकई, धान आदि की पैदावार में सिर्फ जैविक खाद का ही प्रयोग करती हूँ। इससे गुणवत्तायुक्त, पौष्टिक, अधिक उपज इत्यादि की सुलभता हो गई है। यह सब एकल अभियान की देन है।