'Beti Bachao Beti Padhao' Movement Gaining Momentum in Jharkhand

Bharat Mahan
  • आन्दोलन बन रहा है `बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान
  • ग्रामीण इलाकों कि ३५० लड़कियों की माएं सम्मानित
  • हर लड़की के जन्म होने पर उसके परिवार को तोहफा
  • ग्राम पंचायत साल में कम-से- कम एक दर्जन लड़कियों का जन्मदिन मनाएगी

दस साल के वैवाहिक जीवन में पहली बार धनबाद के पूर्वी टुंडी ब्लॉक की किरण देवी को ताने की जगह तालियाँ सुनने को मिल रहीं हैं. किरण देवी उन ३५० महिलाओं में शामिल हैं जो बेटी या बेटियों की माएं हैं. बेटी बचाओ, बेटी पढाओ अभियान के तहत अब उन्हें जिला प्रशासन की और से सम्मानित किया जा रहा है. वह बताती है अब घर, समाज और गाँव का माहौल बेटियों के मामले में थोडा बदल रहा है. वह गाँव में इस अभियान को लेकर विशेष ग्राम सभाएं आयोजित करवाती हैं. अपने आस-पास के ग्राम पंचायत के मुखियाओं को लगातार संवेदनशील बनाने में जुटी हैं.

धनबाद उन १०० जिलों में शामिल है जहाँ शिशु लिंगानुपात बेहद कम है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बेटी बचाओ, बेटी पढाओ अभियान को आन्दोलन की तरह चलाने की प्रतिबद्धता दिखाई है. बेटी बचाओ, बेटी पढाओ अभियान धनबाद में इसलिए चलाया जा रहा है क्योंकि इस जिले में अल्ट्रा साउंड तकनीक की उपलब्धता की वजह से शिशु लिंगानुपात झारखण्ड में सबसे कम है.

‘कन्या भ्रूण हत्या’ जैसी घटनाएं बदस्तूर जारी हैं और इस पाप के लिये कोई और नहीं, बल्कि‍ इन अजन्मी बेटियों के नासमझ माता-पिता, इनके अपने ही जिम्मेदार हैं। कुछ चंद सिक्कों की खातिर डॉक्टरी के नाम पर कसाई का काम कर रहे शिक्षित, झोला छाप डॉक्टर, घरेलू तरीकों से इन अजन्मी बच्चियों की जान ली जा रही है। कानून के बावजूद गर्भ में बिटिया का पता लगने पर उस काम-तमाम करने के इंतजाम भी वहां हैं।

धनबाद की जिला समाज कल्याण पदाधिकारी प्रीति कुमारी कहती हैं- इस बात को शायद लोग भूल जाते हैं कि बेटियां भी अपने माता-पिता का नाम रोशन करती हैं और वक्त आने पर, खासकर बुढ़ापे में उनका सहारा भी बन सकती हैं। निष्ठुर सोच वाले ये भी नहीं समझ पा रहे हैं कि अगर बेटियां कम हो गईं तो वे अपने बेटों के लिए बहनें और बहुएं कहां से लाएंगे।

सरकारी, गैर सरकारी तौर पर इस घृणित बुराई को रोकने के प्रयासो के बावजूद कन्या भ्रूण हत्याएं हो रही हैं। अब सरकार इस बदनुमा दाग से अधिक आक्रमकता निबटने के लिए ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के तरह चला रही है।

इस योजना का मुख्य उद्देश्य ‘बालक-बालिका’ अनुपात बढ़ाना है। बालक-बालिका अनुपात (सीएसआर) से यह पता चलता है कि किसी भी राज्य या शहर अथवा देश में हर 1000 बालकों के अनुपात में कितनी बालिकाएं हैं। एक दुखद सच यह है कि कन्या भ्रूण हत्या की निर्मम घटनाओं के चलते भारत में यह अनुपात लगातार घटता जा रहा है। वर्ष २००१ में धनबाद में शिशु लिंगानुपात ९५१ था जो २०११ में ९१७ हो गया.

जिला समाज कल्याण पदाधिकारी बताती हैं कि जन अभियान के माध्यम से सामाजिक मानसिकता को बदल कर और इस विषम विषय पर जागरूकता पैदा करके इस योजना को सफल बनाने की कोशि‍श की जा रही है। इसमें लड़कियों एवं महिलाओं से किए जा रहे भेदभाव को समाप्त करने पर भी जोर दिया जा रहा है। बालक-बालिका अनुपात में बेहतरी को सुशासन के एक प्रमुख विकास संकेतक के तौर पर शामिल करना भी इसका एक उद्देश्य है। इस योजना की मुख्य रणनीतियों में सामाजिक लामबंदी एवं संवाद अभियान को बढ़ावा देना भी शामिल है ताकि सामाजिक मानदंडों में बदलाव लाने के साथ-साथ बालिकाओं को समान महत्व दिलाया जा सके।

प्लान इंडिया के राज्य समन्यवक और पी सी पी एन डी टी एक्ट के तहत बनी राज्य कमिटी के सदस्य अरशद कहते हैं योजना काफी बढ़िया है, पहली बार समुदाय बेटियों के जन्म पर उत्सव मना रहा है. उन्होंने कहा की इस अभियान के तहत सभी ग्राम पंचायतों में गुड्डा-गुड्डी बोर्ड लगाए जाने हैं. हर महीने इस बोर्ड में संबं‍धि‍त गांव के बालक-बालिका अनुपात को दर्शाया जाना है. यह सतत मोनिटरिंग का बढ़िया कार्यक्रम है लेकिन समय पर फण्ड उपलब्ध नहीं होने के चलते धनबाद के ग्राम पंचायतों में यह शुरू ही नहीं हो पाया है. अभियान के अन्तेर्गत  ग्राम पंचायत हर लड़की के जन्म होने पर उसके परिवार को तोहफा भेजेगी. ग्राम पंचायत साल में कम-से- कम एक दर्जन लड़कियों का जन्मदिन मनाएगी.

किरण देवी कहती है कि ग्राम पंचायत के मुखियाओं को इस विषये पर ट्रेनिंग देने की जरूरत है. हम लोग ग्राम सभाओं की बैठकों में लोगों को ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की शपथ दिलाते हैं. किसी गांव में अगर बालक-बालिका अनुपात बढ़ता है, तो वहां की ग्राम पंचायत को सम्मानित किये जाने का प्रावधान है. उसकी शिकायत है कि इस अभियान के तहत बाल विवाह के लिए ग्राम प्रधान को जिम्मेदार माना गया है और उसके खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान है. लेकिन बाल विवाह की सूचना दिए जाने के बाद भी कार्रवाई नहीं होती है. धनबाद में इस अभियान में केवल ६५ लाख रूपए का आबंटन है और राशि भी वितीय वर्ष के अंतिम सप्ताह में प्राप्त हुइ है. जिला समाज कल्याण पदाधिकारी बतातीं है कि यहाँ अभियान को आन्दोलन का रूप दी दिया गया है. नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से, आंगनबाड़ी केन्द्रों पर तथा एनजीओस के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या रोकने के बारे में जागरुकता फैलाने के लिए स्थानीय स्कूलों और कॉलेजों में कार्यक्रम चलाये जा रहें हैं.

सामाजिक कार्यकता अरशद बताते हैं इस अभियान में तीन विभाग शामिल हैं लेकिन इन तीनों में समन्वय के अभाव के बाद भी परिणाम बेहतर आ रहें हैं. महिला एवं बाल विकास की जिम्मेवारी, आंगनवाड़ी केंद्रों पर गर्भावस्था के पंजीकरण को प्रोत्साहित करना, भागीदारों को प्रशिक्षित करना,सामुदायिक लामबंदी और आपसी संवाद को बढ़ावा देना, बालक-बालिका अनुपात को कम करने के अभियान में जुटे चैंपियनों को शामिल करना, अग्रिम मोर्चे पर काम कर रहे कार्यकर्ताओं एवं संस्थानों को मान्यता और पुरस्कार देना है. वहीँ स्वास्थय एवं परिवार कल्या‍ण विभाग से उम्मीद की जाती है कि गर्भधारण पूर्व और जन्म पूर्व जांच तकनीकों पर कड़ी नजर रखी जायेगी.  अस्पतालों में प्रसव को बढ़ावा देने,  जन्म पंजीकरण, निगरानी समितियों के गठन पर भी विशेष काम नहीं हो पा रहा है.

मानव संसाधन विकास विभाग की और से भी महत्वपूर्ण पहल देखने को नहीं मिल रही है. शिक्षा के अधिकार अधिनियम को सख्ती से अमल में लाना, स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय बनाने पर विशेष ध्यान देने की जरुरत है. अरशद बताते हैं कि कमियों के बाद भी इस अभियान का प्रभाव देखने को मिल रहा है जो शुभ संकेत है.

News Source
Sudhir Pal, Sr. Journalist

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