In old age people suffer from a small emotional weakness. They start having expectations from their children. They desire that their children should understand their emotional needs and give them these small joys but the irony is that the children have everything but these small joys, which are very
Value Education
We find all the love and affection from our parents. They worry for us all the time and take care of our every little need. They do everything for us and ensure that we are out of harm's way always, even at the cost of being hurt themselves. We tend to believe that their love for us is actually
It is observed that when faced with small challenges and non-acceptance in life, children develop an inferiority complex. An obese boy when made fun of, loses confidence and goes in to a shell, missing out on opportunities to move ahead in life. This story is of a boy, whose name leads to a complex
इस कहानी में एक मूर्तिकार पूरे राज्य के सामने राजा को चुनौती देता है कि वे उनकी बतायी पहेली को हल करके दिखाये।राजा और राज दरबारी पूरी कोशिश करते हैं, फिर भी उस पहेली को हल नहीं कर पाते।ऐसे में राजा को परेशान देखकर उनकी पुत्री पूरी दक्षता के साथ उस पहेली को हल करने में लग जाती है... और वे उस पहेली को
मानव जीवन कर्म प्रधान है। जन्म के साथ ही संबंध और कर्तव्य जुड़ जाते हैं। मनुष्य कभी अकेला नहीं रहता, किसी-न-किसी की आवश्यकता तो उसे पड़ती ही है और जब साथ में जीवन बिताना ही है , तो एक-दूसरे के हित को भी विचार करना पड़ता है।यहीं से दायित्व आरम्भ होता है।
दायित्व का अर्थ जिम्मेदारी भी होता है। दायित्व
संगति अर्थात साथ रहना, जिस भी वस्तु, विषय या व्यक्ति के साथ निरंतर संपर्क में हम रहते हैं उसका प्रभाव हमारे व्यक्तित्व पर पड़ जाता है। संगति यही है।सदा सद्संगति में ही रहना चाहिए, जिससे कि जीवन में सद्भाव , सदाचार और नैतिकमूल्यों को अपना सकें।विशेष कर बालावस्था और किशोरावस्था में संगति का अधिक
अपने अनुभव से प्राप्त होनेवाला आभास ही अनुभूति है। महान उपदेशक के उपदेश को हम सुनते हैं, किन्तु उसे अपने जीवन में आत्मसात करने के लिए अनुभूति की आवश्यकता होती है।
दैनिक जीवन में कई प्रसंग ऐसे होते हैं, जिनसे हम कुछ-न-कुछ सीखते हैं। हम तभी सीखते जब मन मानता है I स्व-आभास की आवश्यकता है।आत्मा जब किसी
साहस से मनुष्य असंभव को भी संभव बना सकता है। साहस की आवश्यकता केवल युद्ध में ही नहीं, सार्वजनिकजीवन में भी पड़ती है।कई अवसर ऐसे आते हैं, जिसमें कि हमारे पास सब कुछ होते हुए भी कार्य पूर्ण नहीं होता, उस कार्य को पूर्ण करने का साहस नहीं होता।
साहस के लिए शारीरिक क्षमता के साथ मानसिक बल की भी आवश्यकता
भाग्य वह है, जिसे हम समझते हैं कि ईश्वर ने रचा है I भाग्य में जो लिखा है वही होगा, किंतु यह सच नहीं है I भाग्य ईश्वर द्वारा दिया गया एक संकेत है, जिसे प्रेरणा मान कर हमें कर्म करना है। भाग्य अलौकिक है कभी-कभी, किंतु अदृश्य नहीं है। परिश्रम भाग्य की पहली सीढ़ी है।भाग्य भरोसे बैठे रहने से लाभ नहीं
परिवर्तन संसार का नियम हैI प्रत्येक विषय वस्तु सदा परिवर्तित होती रहती है, क्योंकि समय कभी ठहरता नहींI सारांश यह है कि भौतिकता सदा बदलती रहती है।हम जिस भी परिवेश में रहते हैं, उस वातावरण का प्रभाव हम पर रहता है, इसलिए हमारी एक निश्चित धारणा बन जाती है, कभी-कभी हमारी सोच हमारी धारणा कल्याणकारी रहती
आत्मा संस्कृति है तो, सभ्यता शरीर है। शरीर नश्वर है किंतु आत्मा अमर है। किसी भी देश में भौतिक बदलाव आते हैं, सभ्यता बदलती है, किंतु संस्कृति नहीं।हमारा खान-पान, रहन-सहन और जीवनशैली ये सभी संस्कृति के अंग हैं। भारतीय संस्कृति उत्कृष्ट उदाहरण हैं।उदाहरण स्वरूप हम अभिवादन के लिए हाथ जोड़ते हैं I कितने
शिशु जब जन्म लेता तो वह सभी विषयों से अनभिज्ञ रहता है। धीरे-धीरे अपने आसपास के परिवेश केक्रियाकलापों को देख कर वह भी वैसा ही करने लगता है।यही है अनुकरण, कुछ देख कर वैसा ही करना अर्थातसीखना। हम अपने जीवन में जो भी कार्य करते हैं वह इसी संसार से सीखते हैं।
अनुकरण करते हैं। अनुकरण सकारात्मक होना